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रे प्रिय आत्मन्!
मे
दूसरे महाव्रत ‘अपरिग्रह' को समझने के लिए परिग्रह को समझना आवश्यक है। 'बड़ी भ्रांतियां हैं परिग्रह के संबंध में । परिग्रह का अर्थ वस्तुओं का होना नहीं होता । परिग्रह का अर्थ होता है - वस्तुओं पर मालकियत की भावना । परिग्रह का अर्थ होता है—पजेसिवनेस। कितनी वस्तुएं हैं आपके पास, इससे कुछ तय नहीं होता। आप किस दृष्टि से उन वस्तुओं का व्यवहार करते हैं, आप किस भांति उन वस्तुओं से संबंधित हैं, स कुछ इस पर निर्भर है। और वस्तुओं के ही नहीं, हम व्यक्तियों के प्रति भी परिग्रही, पजेसिव होते हैं।
हिंसा के संबंध में कुछ बातें मैंने कल आपसे कहीं । परिग्रह, पजेसिवनेस, हिंसा का ही
अपरिग्रह
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