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हम बात करेंगे जिससे चार दिन हमने जो कहा है वह उपलब्ध हो सकता है। कल साधन की बात है।
क्या करें कि अहिंसा आ जाये? क्या करें कि अचौर्य आ जाये? क्या करें कि अपरिग्रह आ जाये? क्या करें कि अकाम आ जाये? कौन-सा है मार्ग? कौन-सा है द्वार? कौन-सा है सूत्र?
ये थोड़ी-सी बातें इतने प्रेम और शांति से आपने सुनीं, उससे मैं बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे प्रभु को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
अकाम 89 www.jainelibrary.org
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