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जुदा जुदा विद्वानोना अभिप्रायोनी चर्चा कर्या पछी श्रीकुलकर्णी एवा तारण उपर आवे छे के ग्रंथकार आ.विमलसूरि श्वेतांबर संप्रदायना हता. आ निर्णय उपर आववा माटे तेओ मुख्य त्रण मुद्दाओ आ प्रमाणे जणावे छे.
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८३:१२ कैकयीनुं मोक्षगमन. (दिगंबरो स्त्रीओनी मुक्ति मानता नथी. )
७५ : ३५-३६ बार देवलोकनुं वर्णन. (दि. १६ देवलोक माने छे.)
१७ : ४२ ‘धर्मलाभ' शब्दनो प्रयोग. (दि. 'धर्मवृद्धि' शब्द प्रयोग करे छे.)
२ : ८२ वीसस्थानक वर्णन ज्ञाताधर्मकथा ८ : ६९ने मळतुं छे.
४ : ५८, ५ : १६८ चक्रवर्तीनी ६४००० राणीओ (दि.मां ९६००० बतावी छे.)
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२ : ५० समवसरणना ३ गढनुं वर्णन.
(दि.मां माटीना गढ साथे ४ गढ होय छे. तिलोयपन्नत्ति ४ : ७३३)
ग्रंथकारश्रीए आपेलो रचना संवत अमान्य करी केटलाक विद्वानोए जुदी मान्यता रजू करी छे. हर्मन जेकोबीना मते वीरनिर्वाण संवत नहीं पण विक्रमसंवत ५३०मां रचना थई हशे .
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नाईलकुलवंशने नाईलीशाखा अथवा नागेन्द्रगच्छ तरीके ओळखवामां आवे छे. नंदिसूत्रमां श्वेतांबराचार्य भूतदिन्ननुं विशेषण ‘नाइलकुलवंशनंदिकर' अपायुं छे. आ ज विशेषण आ. विमलसूरिए (११८ : ११७मा) पोताना गुरु माटे प्रयोज्युं छे.
पउमचरियंमां चारथी पांच वखत 'सेयंबर' शब्दप्रयोग सहज रीते थयो छे.
डॉ. के. एच. ध्रुवना मते ई.स. ६७८ थी ७७८ वच्चे रचना थई छे. (जैनयुग वो.- १ भाग - २ वि.सं. १९८१ पेज ६८-६९)
पं. परमानंद जैन शास्त्रीना मते आ. विमलसूरि कुंदकुंदाचार्य पछी थया छे. ( अनेकांत कि. १०-११ ई.स. १९४२)
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पं. कल्याणविजयजीना मते ई.स. २७४ (डो. कुलकर्णी उपरना पत्रमां, जुओ डॉ. कुलकर्णिनी प्रस्तावना) ग्रंथकारे असंदिग्ध शब्दोमां जणावेल रचना संवतने न मानवा माटे विद्वानो केटलाक कारणो आपे छे. ते
आवा छे.
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पउमचरियंनी भाषा महाराष्ट्री प्राकृत छे. श्वेतांबर संप्रदायनुं मोटाभागनुं प्रकरणादि साहित्य महाराष्ट्रीय प्राकृतमां मळे छे. दिगंबरोनुं साहित्य महाराष्ट्री प्राकृतमां मळतुं नथी. मुख्यतया दि. साहित्य शौरसेनीमां मळे छे.)
शक, सुरंग, यवन, दिनार जेवा शब्दोनो उपयोग पउमचरियंमां आवे छे ते शब्दोनो प्रयोग भारतमां मोडेथी शरू थयो छे.
ग्रहोना नाम ग्रीक असरवाळा छे.
केटलाक छंदो अर्वाचीन ग्रंथमां ज जोवा मळे तेवा अहीं छे.
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