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________________ 26 परम्परा में भी पाया जाता है अतः इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का महत्त्वपूर्ण साक्ष्य तो नहीं कहा जा सकता । दोनों ही परम्परा में प्राचीन काल में नव पदार्थ ही माने जाते थे, किन्तु तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् दोनों में सात तत्त्वों की मान्यता भी प्रविष्ट हो गई । चूंकि श्वेताम्बर प्राचीन स्तर के आगमों का अनुसरण करते थे, अतः उनमें ९ तत्त्वों की मान्यता की प्रधानता बनी रही । जबकि दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थ के अनुसरण के कारण सात तत्त्वों की प्रधानता स्थापित हो गई। (१२) पउमचरियं में उसके श्वेताम्बर होने के सन्दर्भ में जो सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध है वह यह कि उसमें कैकयी को मोक्ष की प्राप्ति बताई गई है, इस प्रकार पउमचरियं स्त्रीमुक्ति का समर्थक माना जा सकता है। यह तथ्य दिगम्बर परम्परा के विरोध में जाता है। किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यापनीय भी स्त्रीमुक्ति तो स्वीकार करते थे अतः यह दृष्टि से यह ग्रन्थ श्वेताम्बर और यापनीय दोनों परम्पराओं से सम्बद्ध या उनका पूर्वज माना जा सकता है। (१३) इसी प्रकार पउमचरियं में मुनि का आशीर्वाद के रूप में धर्मलाभ कहते हुए दिखाया गया है, जबकि दिगम्बर परम्परा में मुनि आशीर्वचन के रूप में धर्मवृद्धि कहता हैं, किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि धर्मलाभ कहने की परम्परा न केवल श्वेताम्बर है, अपितु यापनीय भी है । यापनीय मुनि भी श्वेताम्बर मुनियों के समान धर्मलाभ ही कहते थे । ___ ग्रन्थ के श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के इन अन्तःसाक्ष्यों के परीक्षण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ग्रन्थ के अन्तःसाक्ष्य मुख्य रूप से उनके श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के पक्ष में अधिक हैं । विशेष रूप से स्त्री-मुक्ति का उल्लेख यह सिद्ध कर देता है कि यह ग्रन्थ स्त्री-मुक्ति निषेधक दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध नही हो सकता है । (१४) विमलसूरि ने पउमचरियं के अन्त में अपने को नाइल (नागेन्द्र) वंशनन्दीकर आचार्य राहू का प्रशिष्य और आचार्य विजय का शिष्य बताया है। साथ ही पउमचरियं का रचनाकाल वी.नि.सं. ५३० कहा है। ये दोनों तथ्य भी विमलसूरि एवं उनके ग्रन्थ के सम्प्रदाय निर्धारण हेतु महत्त्वपूर्ण आधार माने जा सकते हैं । यह स्पष्ट है कि दिगम्बर परम्परा में नागेन्द्र कुल का कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है, जबकि श्वेताम्बर मान्य कल्पसूत्र स्थविरावली में आर्यवज्र के प्रशिष्य एवं व्रजसेन के शिष्य आर्य नाग से नाईल या नागिल शाखा के निकलने का उल्लेख है।" श्वेताम्बर पट्टावलियों के अनुसार भी व्रजसेन के शिष्य आर्य नाग ने नाइल शाखा प्रारम्भ की ३८. सिद्धिपयं उत्तम पत्ता-पउमचरियं ८६/१२ । ३९. देखें, पउमचरियं इण्ट्रोडक्सन पेज २१ । ४०. गोप्या यापनीया । गोप्यास्तु वन्द्यमाना धर्मलाभं भणन्ति ।..... षट्दर्शनसमुच्चय टीका ४/१ । ४१. पउमचरियं, ११८/११७ । ४२. वही, ११८/१०३ । ४३. 'थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिएहितो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया'.... कल्पसूत्र २२१, पृ. ३०६ । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only wwwjainelibrary.org
SR No.004024
Book TitlePaumchariyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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