SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 17 our m * 3 9 क्र. ग्रन्थ लेखक भाषा काल पउमचरियं आ.विमलसूरि (श्वे.) प्राकृत वी.नि. ५३० २ वसुदेव हिण्डी श्री संघदासगणि (श्वे.) प्राकृत ईस्वीसन् ६०९ ३ पद्म पुराण श्री रविषेण (दि.) संस्कृत ईस्वीसन् ६७८ पउमचरिउ श्री स्वयम्भू (दि.) अपभ्रंश प्रायः ई.सन् ८वीं शती (मध्य) चउपन्न महापरिसचरियं आ.शीलाङ्क (श्वे.) प्राकृत ई.सन् ८६८ उत्तरपुराण श्री गुणभद्र (दि.) संस्कृत ई.सन् प्राय ९वीं शती बृहत्कथाकोष श्री हरिषेण (दि.) संस्कृत ई.सन् ६३१-६३२ ८ महापुराण श्री पुष्पदंत (दि.) अपभ्रंश ई.सन् ९६५ कहावली आ. भद्रेश्वर (श्वे.) प्राकृत प्राय ईस्वीसन् ११वीं शती १० त्रिषष्टीशलाकापुरुषचरित आ.हेमचन्द्र (श्वे.) संस्कृत प्रायः ईस्वीसन् १२वीं शती ११ योगशास्त्र स्वोपज्ञ वृत्ति आ. हेमचन्द्र (श्वे.) संस्कृत प्रायः ईस्वीसन् १२वीं शती १२ शत्रुजयमहात्म्य आ. धनेश्वरसूरि (श्वे.) संस्कृत प्रायः ईस्वीसन् १४वीं शती १३ पुण्यचन्द्रोदय पुराण श्री कृष्णदास (दि.) संस्कृत ई.सन् १५२८ १४ रामचरित देवविजयगणि (श्वे.) संस्कृत ई.सन् १५९६ १५ लघुत्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित मेघविजय (श्वे.) संस्कृत ई.सन् की १७वीं शती इनमें एकाध अपवाद को छोडकर शेष सभी ग्रन्थ प्रायः प्रकाशित है । इनके अतिरिक्त भी रामकथा सम्बन्धी अनेक हस्तलिखित प्रतियों का उल्लेख जिनरत्नकोश में मिलता है, जिनकी संख्या ३० से अधिक है । इनमें त, सीताचरित आदि भी सम्मिलित है । विस्तारभय ये यहा इन सबकी चर्चा अपेक्षित नहीं है । आधुनिक युग में भी हिन्दी में अनेक जैनाचार्यों ने रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की है। इनमें स्थानकवासी जैन संत शुक्लचन्द्रजी म.की 'शुक्लजैनरामायण' आ. भद्रगुप्तसूरीश्वरजी का 'जैन रामायण' तथा आचार्य तुलसी की 'अग्नि-परीक्षा' अति प्रसिद्ध है। जैनों में रामकथा की दो प्रमुख धाराएँ वैसे तो आवान्तर कथानकों की अपेक्षा जैन परम्परा में भी रामकथा के विविध रूप मिलते है। फिर भी जैनों में रामकथा की दो धाराए लगभग प्राय ईसा की ९वीं शताब्दि से देखी जाती है - १. ग्रन्थकार विमलसूरि की रामकथा धारा और २. गुणभद्र की रामकथा धारा । सम्प्रदायों की अपेक्षा-अचेल यापनीय एवं श्वेताम्बर ग्रन्थकार विमलसूरि की रामकथा की धारा का अनुसरण करते रहे, जबकि दिगम्बर धारा में भी मात्र कुछ आचार्यो ने ही गुणभद्र की धारा का अनुसरण किया । श्वेताम्बर परम्परा में संघदासगणि एवं यापनियो में रविषेण, स्वयम्भू एवं हरिषेण भी मुख्यतः विमलसूरि के 'पउमचरियं' का ही अनुसरण करते है, फिर भी संघदासगणि Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004024
Book TitlePaumchariyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy