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________________ २५० पूर्वसंस्करणना पाठ मुजब कुलकरोनी ऊंचाई क्रमशः १८०० १३००८०० धनुष्य पछी क्रमशः २५-२५ धनुष घटाडवी एवो अर्थ अभिप्रेत छे. आवो सुधारो कागळनी प्रतोमा दिगंबरग्रंथ तिलोयपन्नत्ति ४२१:४९५ प्रमाणे सुधार्यो छे तेवू स्पष्ट जणाय छे. ज्यारे जेसलमेरनी ताडपत्रीय प्रतनो पाठ प्राचीन अने स्वीकारवा योग्य होवा छतां ए प्रत मळी त्यारे ग्रंथर्नु मुद्रण शरू थयुं होवाथी एना पाठो ७मा परिशिष्टमां अपाया छे. जे प्रतना पाठ मजब कुलकरोनी क्रमशः ऊंचाई ९०० ८०० ७०० ६५० ६०० ५५० ५२५ धनुष्य होवानुं जणाय छे. अने आ प्रमाण आवश्यक नियुक्ति गार्था १५६ प्रमाणेनुं छे. आथी स्पष्ट समजाय छे के पाछळथी कागळनी प्रतो उपर प्रतिलेखन करती वखते दिगंबर संप्रदायना अभिनिवेशथी कोईके मनस्वी फेरफारो कर्या छे. आ कारणे प्रस्तुत ग्रंथमा केटलीक वातो दिगंबरसंप्रदायानुसारी जोवा मळे छे. श्री कुलकर्णी अने चंद्रए नोंधेली केटलीक विगतो १. पउमच. २:२८-२९मां भ. महावीरप्रभुना लग्ननो उल्लेख नथी. पउमच. २:२२ मां भ. महावीरना देवानंदानी कुक्षीमां च्यवननी वात नथी. (जो के ग्रंथकार अतिसंक्षेपमा वर्णन करता होय त्यारे अमुक घटनानो उल्लेख छोडी दे एनो अर्थ एमने ए मान्य नथी एवो करी न शकाय. जेमके त्रिशष्ठि १०मा पर्वमां देवनंदानी कुक्षीमां च्यवननो उल्लेख करनार क.स. हेमचन्द्रसूरि म.सा.ए योगशास्त्रनी टीकामां देवानंदानो उल्लेख नथी कर्यो.) ३. आवी रीते कुलकरनी संख्या १४ (३ : ५०-५६) समाधिमरण, चोथा शिक्षापदमां स्थान (१४ : ११५) वगेरे केटलीक बाबतो विद्वानोए नोंधी छे. कुलकर्णी अने चंद्रए पउमचरियंमा मात्र श्वेतांबर संप्रदायने ज स्वीकार्य थई शके एवी बाबतोनी नोंध आपी छे. केटलीक आ प्रमाणे छे. १. जिणवरमुहाओ अत्थो जो पुचि निग्गओ बहुवियप्पो । सो गणहरेहिं धरिउं संखेवमिणो य उवट्ठो ॥ १ : १० ॥ पउमचरियंनी शरूआतमां ज जिनेश्वरना मुखथी निकळेलो अर्थ गणधरोए धारण करी उपदेश आप्यानुं जणावे छे. दिगंबरमत मुजब भगवान देशनामां कोई शब्द बोलता नथी. मात्र दिव्यध्वनि ज प्रगटतो होय छे. पं.श्री कल्याणविजयजीना मते आ मुद्दो ग्रंथकारना श्वेतांबर होवा माटे अगत्यनो छे. १. णव धणुसया य पढमो अट्ठ य सत्तद्ध-सत्तमारं च । छच्चेव अद्धछट्ठा पंचसया पण्णवीसं तु ॥ १५६ ॥ २. जो के कहेवाता विद्वानो क्यारेक साव वाहियात दलीलो करता होय छे. जेमके पउमच.मां स्थावरना पांच प्रकारो बताव्या छे माटे आ ग्रंथ दिगंबर छे एवं पंडित प्रेमी जणावे छे. (जुओ कुलकर्णीनी Introduction पेज १९) Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004024
Book TitlePaumchariyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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