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ॐ नमः सिद्धेभ्यः। उत्थानिका।
तत्वार्थसूत्र। तत्त्वार्थसूत्र, जिसका अपरनाम तत्त्वार्थाधिगममोक्षशास्त्र भी है, जैनियोंका परममान्य और मुख्य ग्रन्थ है । इसमें जैनधर्मके सम्पूर्ण सिद्धान्त बड़े लाघवसे संग्रह किये गये हैं। ऐसा कोई भी जैनसिद्धान्त नहीं है, जो इसके सूत्रोंमें संगठित न हो। सिद्धान्तसागरको एक अत्यन्त छोटेसे तत्त्वार्थरूपी घटमें भर देना यह कार्य इसके क्षमताशाली रचयिताका ही था । तत्त्वार्थके छोटे २ सूत्रोंके अर्थगांभीर्यको देखकर विद्वानोंको विस्मित होना पड़ता है, और उसके रचयिताकी सहस्रमुखसे प्रशंसा करनी पड़ती है।
तत्त्वार्थसूत्रके प्रथम चार अध्यायोंमें जीवतत्त्वका, पांचवेंमें अजीव (पुद्गल ) का, छठे सातवेमें आस्रवका, आठवेंमें बंधका, नवमेंमें संवर और निर्जराका और अन्तके दशवें अध्यायमें मोक्षतत्त्वका वर्णन है । इस प्रकार इसमें जैनियोंके माने हुए सप्ततत्त्वोंका विवरण है । यथा--
पढम चउक्के पढमं पंचमे जाण पुग्गलं तच्चं । छहसत्तमेसु आसव, अठ्ठमे बंधं च णायव्यो । णवमे संवरणिज्जर दहमे मोक्खं वियाणेहि ।
इह सत्ततच्च भणियं दहसुत्ते मुणिवरिंदेहिं ॥ तत्त्वार्थसूत्रके मूलका भगवत् उमास्वामि अथवा उमास्वाति हैं। इन्हें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही पूज्य मानते हैं, और इसी प्रकार उनके बनाये हुए मोक्षशास्त्रको भी आदरणीय समझते हैं । दोनों ही सम्प्रदायोंके आचार्योने तत्त्वार्थसूत्र पर बड़े २ भाष्य और टीकाग्रन्थ रचे हैं । और मैं समझता हूं, तत्त्वार्थसूत्रपर जितने भाष्य और टीकाग्रन्थ बने हैं, कदाचित् ही किसी दूसरे ग्रन्थपर बने हों। सुतरां कहा जा सकता है कि, तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ जैसा अद्वितीय बना; लोगोंने आदर भी उसका वैसा ही किया ।
तत्त्वार्थसूत्रपर आज तक कितने भाष्य और टीकाग्रन्थ लिखे गये हैं, साधनाभावसे उन सबका उल्लेख न करके मैं यहां कुछ टीका ग्रन्थोंकी सूची देता हूं, जो अनेक भंडारोंके सूचीपत्रों और रिपोर्टोसे तयार की गई है।
१ दिगम्बर समाजमें उमास्वामि नामका और श्वेताम्बर समाजमें उमास्वाति नामका अतिशय प्रचार देखा जाता है, परन्तु ग्रन्थों में प्रायः उमास्वाति ही आता है । श्रुतसागरीटीकामें आचार्य श्रुतिसागरजीके "उमास्वामिना, उमास्वामिनः" आदि प्रयोगोंसे उमास्वामि नाम भी माननीय है ।
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