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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् चाहिये । जैसे मनुष्य आदि चारों गतियोंमें स्त्री पुरुष दोनोंमें शास्त्रोक्त रीतिसे यथासंभव सम्यग्दर्शन होता है। ऐसेही इन्द्रिय, काय, योगादिसहित जीवोंमें भी आगमके अनुसार सत् आदि प्ररूपणा करनी चाहिये । संख्या-सम्यग्दर्शन कितना है ? क्या संख्येय है. वा असंख्येय है अथवा अनन्त है ? इसका उत्तर कहते हैं. कि सम्यग्दर्शन असंख्येय हैं । और सम्यग्दृष्टि अनन्त हैं । क्षेत्र अर्थात् सम्यग्दर्शन कितने क्षेत्रमें है ? उ०-लोकके असंख्येयभागमें सम्यग्दर्शन है । स्पर्शन-सम्यग्दर्शननें क्या स्पर्श किया है ? उत्तर-लोकका असंख्येयभाग सम्यग्दर्शनसे स्पृष्ट है; अर्थात् लोकके असंख्येयभागको सम्यग्दर्शनने स्पर्श किया है; और सम्यग्दृष्टिने तो संपूर्ण लोकको स्पर्श किया है। यहां प्रश्न करते हैं कि सम्यग्दृष्टि तथा सम्यग्दर्शनमें क्या भेद है ? उत्तर कहते हैंअपाय और सद्रव्यरूपसे सम्यग्दर्शन अपाय वा आभिनिबोधिक है । अर्थात् सम्यग्दर्शनका कदाचित् अपाय (नाश ) होता है और कदाचित् स्फुरण होता है, उस अपायके योगसे सम्यग्दर्शन है वह केवलीको नहीं होता, अतः केवली सम्यग्दर्शनी नहीं है. और सम्यग्दृष्टि तो है । काले निरूपणा-सम्यग्दर्शन कितने कालतक रहता है ? इसका उत्तर कहते हैं । वह कालकी स्थिति एक जीव तथा नाना जीवोंसे परीक्षा करने योग्य है । जैसे जघन्यतासे अर्थात् न्यूनसे भी न्यून एक जीवके प्रति अन्तमुहूर्त पर्यन्त सम्यग्दर्शनकी स्थिति है । और उत्कृष्टतासे अर्थात् अधिकसे अधिक कुछ अधिक छियासठि (६६) सागरोपम इसकी स्थिति है । और नाना जीवोंके प्रति संपूर्ण कालमें सम्यग्दर्शनकी स्थिति है, अर्थात् नाना जीवोंमेंसे किसीनकिसी जीवमें सदाकालमें सम्यग्दर्शन बना ही रहता है । अन्तरकी प्ररूपणा-सम्यग्दर्शनका अन्तर अर्थात् विरहकाल क्या है ? उत्तर-एक जीवके प्रति जघन्यतासे तो अन्तर्मुहूर्त है,
और उत्कृष्टतासे उपार्द्धपरिवर्तन काल तक है । और नाना जीवोंके प्रति अन्तर अर्थात् विरह काल है ही नहीं; क्योंकि नाना जीवोमेंसे किसीनकिसी जीवमें सदा सम्यग्दर्शन बना रहैगा । भाव प्ररूपणा-औपशमिक आदि भावों से सम्यग्दर्शन कौनसा भाव है ? उत्तर- औदयिक तथा पारिणामिक भावोंको छोड शेष तीन भावोंमें अर्थात् औपशमिक, क्षायौपशमिक, और क्षायिकभावमें सम्यग्दर्शन होता है । अल्प बहुत्व प्ररूपणा-औपशमिक आदि तीन भावोंमें वर्तमान सम्यग्दर्शनोंकी तुल्य संख्या है अथवा अल्पबहुत्व अर्थात् न्यूनाधिक है ? उत्तर कहते हैं। सबसे न्यून औपशमिकभाव है । और उससे असंख्येयगुण क्षायिकभाव है । और उससे भी क्षायौपशमिक भाव असंख्येयगुण है । और सम्यग्दृष्टि तो अनन्तगुण है । इसप्रकार सब भावोंका नाम स्थापना आदिसे न्यास करके प्रमाण आदि द्वारा उनका बोध सम्पादन करना चाहिये ॥ ___ सम्यग्दर्शनका लक्षण आदि कहचुके । अब आगे ज्ञानके विषयमें कहेंगे ॥
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