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________________ २३८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् सङ्खथेयगुणाः सामायिकसूक्ष्मसम्पराययथाख्यातचारित्रसिद्धाः सङ्घयेयगुणाः । छेदोपस्थाप्यसूक्ष्मसम्पराययथाख्यातचारित्रसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः । चारित्र (के विषयमें अल्प बहुत्व)। यहां भी दो नय अर्थात् प्रत्युत्पन्नभाव ज्ञापनीय तथा पूर्वभावज्ञापनीय योजित करना ( लगाना ) चाहिये । प्रत्युत्पन्नभावज्ञापनीय नयके अनुसार नोचारित्र (पुरुष) तथा नो चारित्री (स्त्री) वा नो अचारित्र सिद्ध होते हैं। इसकी अपेक्षा अल्प बहुत्व नहीं है । और पूर्वभावज्ञापनीयके अनुसार व्यञ्जित तथा अव्यञ्जितमें भी । उसमें अव्यञ्जितमें सर्वस्तोक पञ्चचारित्र सिद्ध तथा चतुश्चारित्र सिद्ध सङ्ख्येय गुण होते हैं । तथा त्रिचारित्र सिद्ध भी सङ्ख्येय गुण होते हैं । और व्यञ्जित ( व्यक्त ) रूपमें सर्वस्तोक ( सम्बन्धी ) सामायिक, छेदोपस्थाप्य, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, तथा यथाख्यात एतत्पंच चारित्र सिद्ध, तथा छेदोपस्थाप्य, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय तथा यथाख्यात, एतत् चतुश्चारित्र सिद्ध संख्येय गुण होते हैं। तथा सामायिक, छेदोपस्थाप्य, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात, एतत् स्वरूप चतुश्चारित्र सिद्ध संख्येय गुण होते हैं। तथा सामायिक परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, तथा यथाख्यात एतत्स्वरूप चतुश्चारित्र सिद्ध सङ्घय गुण होते हैं। तथा सामायिक, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात एतत्स्वरूप त्रिचारित्रसिद्ध सङ्खयेय गुण होते हैं । अथवा छेदोपस्थाप्य, सूक्ष्मसंपराय तथा यथाख्यात एतत्स्वरूप त्रिचारित्र सिद्ध सङ्घय गुण होते हैं। प्रत्येकबुद्धबोधितः । सर्वस्तोकाः प्रत्येकबुद्धसिद्धाः । बुद्धबोधितसिद्धा नपुंसकाः सङ्ख्येयगुणाः । बुद्धबोधितसिद्धाः स्त्रियः सङ्खयेयगुणाः । बुद्धबोधितसिद्धाः पुमांसः सङ्खयेयगुणा इति । प्रत्येक बुद्ध बोधित ( के विषयमें अल्प बहुत्व ) । सर्वस्तोक ( सम्बन्धी ) प्रत्येकबुद्धसिद्ध होते हैं । और बुद्धबोधित सिद्ध नपुंसक सङ्घय गुण होते हैं। तथा बुद्धबोधित अर्थात् बुद्ध सिद्धोंसे बोध कराई हुई स्त्री सिद्ध (सिद्धता दशा प्राप्त स्त्रियां ) भी सङ्ख्य गुण होती हैं । और बुद्धबोधित पुरुष सिद्ध भी सङ्केय गुण होते हैं । ___ ज्ञानम् । कः केन ज्ञानेन युक्तः सिध्यति । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयस्य सर्वः केवली सिध्यति । नास्त्यल्पबहुत्वम् । पूर्वभावप्रज्ञापनीयस्य सर्वस्तोका द्विज्ञानसिद्धाः चतुर्ज्ञानसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः त्रिज्ञानसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः । एवं तावदव्यजिते व्यजितेऽपि सर्वस्तोका मतिश्रुतज्ञानसिद्धाः मतिश्रुतावधिमनःपर्यायज्ञानसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः मतिश्रुतावधिज्ञानसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः ॥ ज्ञान ( के विषयमें अल्प बहुत्वका विचार ) । कौन किस ज्ञान युक्त ( सहित ) सिद्ध होता है । प्रत्युत्पन्न भाव ज्ञापनीय नयके अनुसार सब केवली ( केवल ज्ञान युक्त)सिद्धताको प्राप्त होता है। इसकी अपेक्षासे अल्प बहुत्व भाव नहीं है । और पूर्व भाव ज्ञापनीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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