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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अधोलोकसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः तिर्यग्लोकसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः सर्वस्तोकाः समुद्रसिद्धाः द्वीपसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः । एवं तावदव्यञ्जिते व्यजितेऽपि सर्वस्तोका लवणसिद्धाः कालोदसिद्धाः सङ्खयेयगुणा जम्बूद्वीपसिद्धाः सङ्खयेयगुणा धातकीखण्डसिद्धाः सङ्खयेयगुणाः पुष्करार्धसिद्धाः सङ्खयेयगुणा इति ॥
क्षेत्रसिद्धोंके जन्मसे तथा संहरणसे कर्मभूमिसिद्ध और अकर्मभूमिसिद्ध सर्व स्तोक ( व्याप्त करते हैं) और संहरणसिद्ध जन्मकी अपेक्षासे सङ्ख्येय गुण हैं । संहरण भी दो प्रकारका है, एक तो परकृत संहरण और दूसरा स्वयंकृत संहरण । उसमें परकृत संहरण देवोंके कर्मसे चारण तथा विद्याधरोंके द्वारा । और स्वयंकृत संहरण चारण तथा विद्याधरोंका ही होता है । इनके क्षेत्रोंका विभाग कर्ममूमि, अकर्मभूमि, द्वीप, समुद्र, ऊर्ध्वभाग, अधोभाग, तथा तिर्यक् इस रीतिसे तीनों लोक हैं । उसमें सर्वस्तोक ऊर्ध्वलोकसिद्ध अधोलोकसिद्ध सङ्खयेय गुण हैं, तिर्यग्लोकसिद्ध सङ्ख्येय गुण, और सर्वस्तोक, समुद्रसिद्ध, द्वीपसिद्ध संख्येयगुण हैं। इस प्रकार अव्यञ्जित (अव्यक्त वा सामान्य ) रूपमें विभाग वर्णन हुआ, और व्यञ्जित (व्यक्त स्पष्ट वा विशेष ) रूपसे भी सर्वस्तोक, लवणसिद्ध तथा कालोदसिद्ध सङ्खयेय गुण हैं। जंबूद्वीपसिद्ध सङ्ख्येय गुण, धातकीखण्डसिद्ध संख्येयगुण, तथा पुष्करार्द्धसिद्ध सङ्ख्येय गुण होते हैं।
काल इति त्रिविधी विभागो भवति अवसर्पिणी उत्सर्पिणी अनवसर्पिण्युत्सर्पिणीति । अत्र सिद्धानां (व्यञ्जितानां) व्यञ्जिताव्यञ्जितविशेषयुक्तोऽल्पबहुत्वानुगमः कर्तव्यः । पूर्वभावप्रज्ञापनीयस्य सर्वस्तोका उत्सर्पिणीसिद्धा अवसर्पिणीसिद्धा विशेषाधिका अनवसर्पिण्युत्सर्पिणीसिद्धाः सङ्ख्येयगुणा इति । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयस्याकाले सिध्यति । नास्त्यल्पबहुत्वम् । ___ काल इसका तीन प्रकारका विभाग होता है । जैसे अवसर्पिणी, (नीचेकी ओर आनेवाली कालकी गति ), उत्सर्पिणी (ऊपरकी ओर चढ़नेवाली कालकी गति ) तथा अनवसर्पिणी-उत्सर्पिणी अब इसमें यहांपर सिद्धोंका व्यञ्जित सिद्धोंका व्यञ्जित तथा अव्यञ्जित विशेषोंकरके सहित अल्प तथा बहुत्वका अनुगम ( विशेष प्रमाणसहित अनुभव ) करना चाहिये । पूर्वभावज्ञापनीयके अनुसार सर्वस्तोक (व्याप्त) उत्सर्पिणीसिद्ध ( उत्सर्पिणी स्वरूप कालमें सिद्ध होनेवाले जीव ) अवसर्पिणीसिद्ध ( अवसर्पिणी स्व. रूप कालमें होनेवाले सिद्ध जीव )विशेष अधिक हैं, तथा अनवसर्पिणी उत्सर्पिणी सिद्ध सङ्खयेयगुण हैं। और प्रत्युत्पन्नज्ञापनीय नयके अनुरोधसे अकालमें सिद्ध होते हैं । इस नयकी अपेक्षा अल्प बहुत्व नहीं है।
गतिः । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयस्य सिद्धिगतौ सिध्यति । नास्त्यल्पबहुत्वम् । पूर्वभावप्रज्ञापनीयस्यानन्तरपश्चात्कृतिकस्य मनुष्यगतौ सिध्यति । नास्त्यल्पबहुत्वत् । परम्परपश्चात्कृ
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