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विशाल “धवला” नामक टीका लिखी तथा इन्हीं ने आचार्य गुणधर (विक्रम पूर्व प्रथम शती) द्वारा लिखित कसाय पाहुड सुत्त तथा चूर्णि सूत्रों पर “जयधवला" नामक विशाल टीका लिखी । यह टीका सात हजार श्लोक प्रमाण है । आ० वीरसेन इस टीका का प्रारम्भिक भाग अर्थात लगभग बीस हजार श्लोक प्रमाण लिख पाये थे कि इनका स्वर्गवास हो गया जिसे इनके सुयोग्य शिष्य आचार्य जिनसेन (नवीं शती का उत्तरार्द्ध) ने पूरा किया।
___ इतने महान् और महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त ग्रन्थों और इनकी विशाल टीकाओं के इने-गिने विद्वानों में पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री का नाम अग्रणी रहा है । जिन्हें इन दुरूह सिद्धान्त ग्रन्थों का तलस्पर्शी ज्ञान था और जिन्होंने इन महान् ग्रन्थों और इनकी टीकाओं की हृदयस्पर्शी व्याख्या तथा अनुवाद आदि कार्य राष्ट्रभाषा हिन्दी में जिस उत्कृष्टता और प्रामाणिकता से प्रस्तुत किया है, इसके लिए हम सभी युगों-युगों तक उनके आभारी रहेंगे।
कटनी (मध्य प्रदेश) में दि० २५-१०-९१ को स्व० श्रद्धेय पं० जगन्मोहनलाल जी शास्त्री के सानिध्य और श्रीमान स्व० सवाई सिंघई धन्यकुमार जी जैन की अध्यक्षता में संस्थान की बैठक में इस व्याख्यानमाला के प्रतिवर्ष आयोजन का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया था। तब से अब तक इसके अन्तर्गत अनेक विद्वानों के व्याख्यान हो चुके हैं । इनके प्रकाशन की योजना जब बनी तब संस्थान के उपाध्यक्ष एवं पं० फूलचन्द्र शास्त्री फाउण्डेशन, रुड़की के अध्यक्ष बंधुवर डॉ० अशोक कुमार ने फाउण्डेशन के आर्थिक सहयोग से इनके प्रकाशन की स्वीकृति प्रदान की इसके लिए संस्थान फाउण्डेशन तथा आपके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता है।
इस व्याख्यानमाला के आयोजन एवं प्रकाशन में संस्थान के समस्त अधिकारियों के प्रति हम हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
वाराणसी. अष्टाह्निका पर्व २५-७-१९९६
फूलचन्द्र जैन प्रेमी
उपाध्यक्ष संयोजक, व्याख्यानमाला
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