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पं.फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला
१/३२५, ३२४, ३०८ आदि ।) ज्ञानका विषय परद्रव्य है। धवल २:(१) णमोकार मंत्र के कर्ता पुष्पदन्ताचार्य हैं । प्रस्ता. पृ. २ (२) सामान्य वेदक सम्यक्त्व देव व मनुष्यों के ही अपर्याप्त काल में पाया जा सकता
है । पृ. ४३४ (धवल ६/४३८) (३) लब्ध्यपर्याप्तक भी ज्ञानोपयोगी, दर्शनोपयोगी होते हैं । पृ. ५०३ आदि (४) अयोग केवली के भी शरीर तो है । पृ. ४४९ (द्रष्टव्य षङ्खण्ड. प्रस्ता. पृ. १६) (५) तिर्यंच दर्शनमोह की क्षपणा नहीं करते । पृ. ४८४ (६) द्रव्य स्त्री वेदी (महिला) संयम को नहीं प्राप्त होते । पृ. ५१५ (७) धवला में सर्वज्ञ भाववेद से प्रयोजन है । पृ. ५१५ (द्रष्टव्य ध. १/३३५)
मनुष्यों के सिवा अन्यगति वाले जीव द्वितीयोपशम सम्यक्त्व नहीं प्राप्त करते।
हां, द्वितीयोपशम सहित वहाँ जाते जरूर हैं । पृ. ५६८ (९) जल का स्वाभाविक वर्ण धवल ही है । पृ. ६११ (१०) क्षायिक सम्यक्त्वी को भी कृष्ण लेश्या सम्भव है । पृ.७५२ (११) मन:पर्यय के साथ द्वितीयोपशम सम्यक्त्व सम्भव है । पृ. ७२८ धवल ३:(१) संयमासंयम से प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणि निर्जरा होती है । पृ. ११९ (२) प्रतिसमय अनन्त जीव मरते हैं । पृ. ३०६ (और भी देखें धवल ७/३४६) (३) चतुर्थ गुणस्थान में चारित्रमोहनीय का क्षयोपशम भाव नहीं है। (४) जितने असंयत सम्यक्त्वी मिथ्यात्व में पतित होते हैं उतने ही मिथ्यात्व से
सम्यक्त्व में आ जाते हैं । पृ. १२० आवलि का असंख्यातवाँ भाग भी अन्तर्मुहूर्त है । पृ. ६८ (द्रष्टव्य ध. ७/२८९,
२६७, २९४) (६) अपर्याप्त काल में इन्द्रियाँ नहीं पाई जाती । पृ. ३११ (७) साधिक सूच्यंगुल x २१९ = १ योजन होता है । पृ. ३५ (८) वर्तमान हुण्डावसर्पिणी में पद्मप्रभुतीर्थंकर का शिष्य परिवार सबसे बड़ा हुआ है।
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