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________________ सर्वसुख प्राप्तिका मूल कारण आप्त आगे कहै हैं-विशेष सुखकी प्राप्तिका अर्थी हुवा धर्मकौ अंगीकार करता सर्व ही जीव हैं ताहि विचार करि कोई आप्त जो यथार्थ उपदेशदाता सो अपना आश्रय करना; जाते सुखकी प्राप्तिका मूल कारण आप्त है, सोई कहै है शार्दूलविक्रीडित छंद सर्वःप्रेप्सति सत्सुखाप्तिमचिरात् सा सर्वकर्मक्षयात् सवृत्तात् स च तच्च बोधनियतं सोऽप्यागमात् स श्रुतेः । सा चाप्तात् स च सर्वदोषरहितो रागादयस्तेऽप्यतः तं युक्त्या सुविचार्य सर्वसुखदं सन्तः श्रयन्तु श्रिये ।।९।। अर्थ सर्व जीव भला सुखकी प्राप्तिकौं शीघ्र वांछे हैं। सो यह वांछा प्रत्यक्ष भासै है। बहुरि सुखकी प्राप्ति सर्व कर्मके नाश तैं हो है, जाते सुखका रोकनहारा कोई कर्म है ताका नाश भए बिना सुख कैसे होई । बहुरि सो कर्मका क्षय सम्यक्चारित्र तैं हो है। जारौं बुरा आचरण तें निपजा कर्म सो भला आचरण बिना कैसे नष्ट होइ । बहुरि सो सम्यक् चारित्र ज्ञानतें निश्चित है। जाते ज्ञान बिना बुरा भला आचरणका निश्चय कैसे होइ । बहुरि सो ज्ञान आगमतें हो है। जातें आगम बिना बुरा भलाका ज्ञान होता नांहीं । बहुरि आगम है सो श्रुति जो अर्थप्रकाशक मूल उपदेश तिस विना होता नांहीं। जातें आगम रचना कोई अनुसारतें हो है। बहुरि श्रुति है सो आप्त जो यथार्थ उपदेशदाता तिस” हो है। जातें उपदेश दाता बिना उपदेश कैसैं कोइ । बहरि सो आप्त सर्व दोष रहित है। जातें दोष सहित आप्त होता नांहीं। बहुरि दोष रागादि हैं। जारौं राग, द्वेष, काम, क्रोध, क्षुधा, निद्रा आदि होते यथार्थ उपदेश देइ सकै नांहीं। तातै एई आप्तपना के घातक दोष हैं। ऐसैं अनुक्रम कह्या । या सत्पुरुष हैं ते युक्ति करि भलैं विचारि सर्व सुखका दाता जो आप्त ताकौं सुखरूप लक्ष्म कै अथि आश्रय करौ।। ___ भावार्थ-जाकों सुख चाहिये सो पहले आप्तका निश्चय करि वाका उपदेश्या मार्गकों अंगीकार करै। आगैं तिस आप्तकी सिद्धि होत संतै तिस भगवान आप्तकरि सत्पुरुषनिको उपाय सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप इनि च्यारि आराधनारूप १. तिहितें मु० ९-१२ २. आत्मा ज० पू० ९-४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004018
Book TitleAtmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1983
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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