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________________ उत्तम पात्र साधु उत्तम पात्र साधु सङ्गादिरहिता धीरा रागादिमलवर्जिताः । शान्ता दान्तास्तपोभूषा मुक्तिकांक्षणतत्पराः ॥१९६॥ मनोवाक्काययोगेषु प्रणिधानपरायणाः । वृत्ताढ्या ध्यानसम्पन्नास्ते पात्रं करुणापराः ॥१९७॥ अन्वयार्थ-(सङ्गादिरहिताः) जो परिग्रह और आरंभसे रहित हैं, (धीराः) परीषहोंके सहनेमें धीर हैं, (रागादिमलवर्जिताः) रागद्वेषादि विभाव भावरूपी मलसे रहित हैं, (शान्ताः) शान्तस्वरूप हैं, (दान्ताः) इन्द्रियोंको दमन करनेवाले हैं, (तपोभूषाः) तप ही जिनका आभूषण है, (मुक्तिकांक्षणतत्पराः) मोक्षप्राप्तिकी भावनामें लीन हैं, (मनोवाक्काय-योगेषु प्रणिधानपरायणाः) मन, वचन, कायरूप योगोंके जीतनेमें उद्यमशील हैं, (वृत्ताट्या) चारित्रके धारी हैं, (ध्यानसम्पन्नाः) आत्मध्यानके करनेवाले हैं, (करुणापराः) परम दयालु हैं, (ते पात्रं) ऐसे साधु ही उत्तम पात्र हैं। भावार्थ-उत्तम पात्र साधु ही मुक्तिका लाभ कर सकते हैं । उनको सर्व परिग्रह त्यागकर ममतारहित हो जाना चाहिए, क्षुधा-तृषादि परीषहोंको सहना चाहिए। समभावके अभ्याससे रागद्वेष-भावको जीतना चाहिए। अनशनादि बारह तपका अभ्यास करना चाहिए । पाँचों इन्द्रियोंको अपने वश रखना चाहिए । सदा ही मुक्तिकी ओर दृष्टि रखनी चाहिए । मन वचन कायको वैराग्यरसमें प्रवर्ताना चाहिए, रागवर्द्धक क्रियाओंसे रोकना चाहिए | परमदयालु होकर स्थावर और त्रस सर्व जन्तुओंकी रक्षा करनी चाहिए। सामायिकादि चारित्रको दोषरहित पालना चाहिए और निरन्तर ध्यानका अभ्यास करना चाहिए । जो ऐसा करते हैं वे ही महात्मा एवं उत्तम पात्र साधु हैं। धृतिभावनया युक्ता शुभभावनयान्विताः । तत्त्वार्था हितचेतस्कास्ते पात्रं दातुरुत्तमाः॥१९८॥ अन्वयार्थ-(धृतिभावनया युक्ता) जो धैर्य व क्षमाकी भावनासे युक्त हैं, (शुभभावनयान्विताः) जिनपूजा, शास्त्रस्वाध्याय, दान, तप आदि शुभकार्योंकी भावनामें तत्पर हैं, (तत्त्वार्था हितचेतस्काः ) जिनका मन तत्त्वार्थके मननमें लगा रहता है-निरन्तर जीवादि तत्त्वोंके विचारमें मन संलग्न रहता है, (ते दातुः उत्तमाः पात्र) वे साधु दातारके लिए उत्तम पात्र हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004017
Book TitleSara Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulbhadracharya, Shitalprasad
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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