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________________ १६८] वृहद्रव्यसंग्रह [गाथा ४१ अतः परं शङ्कायष्टमलत्यागं कथयति । निःशङ्काद्यष्टगुणप्रतिपालनमेव शङ्काद्यष्टमलत्यागो भएयते । तद्यथा-रागादिदोषा अज्ञानं वाऽसत्यवचनकारणं तदुभयमपि वीतरागसर्वज्ञानां नास्ति, ततः कारणात्तत्प्रणीते हेयोपादेयतचे मोक्षे मोक्षमार्गे च भव्यैः शङ्का संशयः सन्देहो न कर्तव्यः। तत्र शङ्कादिदोषपरिहारविषये पुनरञ्जनचौरकथा प्रसिद्धा । तत्रैव विभीषणकथा । तथाहि-सीताहरणप्रघदृके रावणस्य रामलक्ष्मणाभ्यां सह संग्रामप्रस्तावे विभीषणेन विचारितं रामस्तावदष्टमबलदेवो लक्ष्मणश्चाष्टमो वासुदेवो रावणाश्चाष्टमः प्रतिवासुदेव इति । तस्य च प्रतिवासुदेवस्य वासुदेवहस्तेन मरणमिति जैनागमे कथितमास्ते, तन्मिथ्या न भवतीति निःशङ्को भत्वा, त्रैलोक्यकण्टकं रावणं स्वकीयज्येष्ठभ्रातरं त्यक्त्वा, त्रिंशदक्षौहिणीप्रमितचतुरङ्गबलेन सह स रामस्वामिपावें गत इति । तथैव देवकीवसुदेवद्वयं निःशङ्कं ज्ञातव्यम् । तथाहि-यदा देवकीबालकस्य मारणनिमि कंसेन प्रार्थना कृता तदा ताभ्यां पर्यालोचितं मदीयः पुत्रो नवमो वासुदेवो भविष्यति तस्य हस्तेन जरासिन्धुनाम्नो नवमप्रतिवासुदेवस्य कंसस्यापि मरणं अब इसके अनन्तर शंका आदि आठ दोषों के त्याग का कथन करते हैं-निःशंक आदि आठ गुणों का जो पालन करना है, वही शंकादि आठ दोषों का त्याग कहलाता है। वह इस प्रकार है-राग आदि दोष तथा अज्ञान ये दोनों असत्य बोलने में कारण हैं और ये दोनों ही वीतराग सर्वज्ञ जिनेन्द्र देव में नहीं हैं; इस कारण श्री जिनेन्द्र देव से निरूपित हेयोपादेयतत्त्व में (यह त्याज्य है, यह ग्राह्य है, इस प्रकार के तत्त्व में), मोक्ष में और मोक्षमार्ग में भव्य जीवों को शंका, संशय या संदेह नहीं करना चाहिए। यहाँ शंका दोष के त्याग के विषय में अंजन चोर की कथा शास्त्रों में प्रसिद्ध है। विभीषण की कथा भी इस प्रकरण में प्रसिद्ध है । तथा-सीता के हरण के प्रसंग में जब रावण का राम लक्ष्मण के साथ युद्ध करने का अवसर आया, तब विभीषण ने विचार किया कि रामचन्द्र तो आठवें बलदेव हैं और लक्ष्मण आठवें नारायण हैं तथा रावण आठवां प्रतिनारायण है। प्रतिनारायण का मरण नारायण के हाथ से होता है, ऐसा जैन शास्त्रों में कहा गया है, वह मिथ्या नहीं हो सकता, इस प्रकार निःशङ्क होकर अपने बड़े भाई तीनलोक के कंटक 'रावण' को छोड़कर, अपनी तीस अक्षौहिणी चतुरंग (हाथी, घोड़ा, रथ, पयादे) सेना सहित रामचन्द्र के समीप चला गया। इसी प्रकार देवकी तथा वसुदेव भी निःशंक जानने चाहिये। जब कंस ने देवकी के बालक को मारने के लिये प्रार्थना की, तब देवकी और वसुदेव ने विचार किया कि हमारा पुत्र नवमा नारायण होगा और उसके हाथ से जरासिंधु नामक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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