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________________ गाथा ३५ ] द्वितीयोऽधिकारः समुदायेन प्रथमपटललक्षणं ज्ञातव्यम् । तत्र पूर्वापरदक्षिणश्रेणित्रयविमानानि, तन्मध्ये विदिग्यविमानानि च सौधर्मसम्बंधीनि भवन्ति, शेषविदिग्द्वय विमानानि तथोत्तरश्रेणिविमानानि च पुनरीशानसम्बन्धीनि । अस्मात्पटलादुपरि जिनदृष्टमानेन संख्येयान्यसंख्येयानि योजनानि गत्वा तेनैव क्रमेण द्वितीयादिपटलानि भवन्ति । अयं च विशेषः - श्रेणी चतुष्टये पटले पटले प्रतिदिशमेकैकविमानं हीयते यावत् पञ्चानुत्तरपटले चतुर्दिवैकैकविमानं तिष्ठति । एते सौधर्मादिविमानाश्चतुरशीतिलक्षसप्तनवतिसहस्रत्रयोविंशतिप्रमिता अकृत्रिम सुवर्णमयजिनगृहमण्डिता ज्ञातव्या [ १४१ इति । अथ देवानामायुःप्रमाणं कथ्यते । भवनवासिषु जघन्येन दशवर्षसहस्राणि, उत्कर्षेण पुनरसुरकुमारेषु सागरोपमं, नागकुमारेषु पन्यत्रयं, सुपर्णे सार्धद्वयं, द्वीपकुमारे द्वयं, शेषकुलपट के सार्धपन्यमिति । व्यन्तरे जघन्येन दशवर्षसहस्राखि, उत्कर्षेण पल्यमधिकमिति । ज्योतिष्कदेवे जघन्येन पन्याष्टमविभागः, उत्कर्षेण चन्द्र े लक्षवर्षाधिकं पल्यम्, सूर्ये सहस्राधिकं पल्यं, शेषज्योतिष्कदेवानामागमानुसारेणेति । श्रथ सौधर्मेशानयोर्जघन्येन साधिकपन्यं, उत्कर्षेण साधिकसागरोपमद्वयं, सनत्कुमार पूर्व, पश्चिम और दक्षिण इन तीन श्रेणियों के विमान और इन तीनों दिशाओं के बीच में दो विदिशाओं के विमान, ये सब सौधर्म प्रथम स्वर्ग सम्बन्धी हैं । तथा शेष दो विदिशाओं के विमान और उत्तर श्रेणी के विमान, वें ईशान स्वर्ग सम्बन्धी हैं । भगवान् द्वारा देखे प्रमाण अनुसार, इस पटल के ऊपर संख्यात तथा असंख्यात योजन जाकर इसी क्रम से द्वितीय आदि पटल हैं । विशेष यह है - प्रत्येक पटल में चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में एक-एक विमान घटता गया है, सो यहाँ तक घटता है कि पंचानुत्तर पटल में चारों दिशाओं में एक-एक ही विमान रह जाता है । सौधर्म स्वर्ग आदि सम्बन्धी ये सब विमान चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस अकृत्रिम सुवर्णमय जिन चैत्यालयों से मंडित हैं, ऐसा जानना चाहिए | अब देवों की आयु का प्रमाण कहते हैं-भवन वासियों में दस हजार वर्ष की जघन्य आयु है । असुरकुमारों में एक सागर, नागकुमारों में तीन पल्य, सुपर्णकुमारों में ढाई पल्य, द्वीपकुमारों में दो पल्य और शेष ६ प्रकार के भवनवासियों में डेढ़ पल्य प्रमाण उत्कृष्ट आयु है । व्यन्तरों में दश हजार वर्ष की जघन्य और कुछ अधिक एक पल्य की उत्कृष्ट आयु है । ज्योतिष्क देवों में जघन्य आयु पल्य के आठवें भाग प्रमाण है । चन्द्रमा की एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य और सूर्य की एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य प्रमाण उत्कृष्ट आयु है । शेष ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट आयु आगम के अनुसार जाननी चाहिए । सौधर्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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