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________________ ११४] बृहद्र्व्यसंग्रहः [गाथा ३५ विशेषः । अथवा प्रसारितपादस्य कटितटन्यस्तहस्तस्य चोर्ध्वस्थितपुरुषस्य यादृशाकारो भवति तादृशः । इदानीं तस्यैवोत्सेधायामविस्ताराः कथ्यन्ते---चतुर्दशरज्जुप्रमाणोत्सेधस्तथैव दक्षिणोत्तरेण सर्वत्र सप्तरज्जुप्रमाणायामो भवति । पूर्वपश्चिमेन पुनरधोविभागे सप्तरज्जुविस्तारः । ततश्चाधोभागात् क्रमहानिरूपेण हीयते यावन्मध्यलोक एकरज्जुप्रमाणविस्तारो भवति । ततो मध्यलोकाचं क्रमवृद्ध्या वर्द्धते यावद् ब्रह्मलोकान्ते रज्जुपञ्चकविस्तारो भवति । ततश्चोर्ध्व पुनरपि हीयते यावल्लोकांते रज्जुप्रमाणविस्तारो भवति । तस्यैव लोकस्य मध्य पुनरुदूखलस्य मध्याधोभागे छिद्र कृते सति निक्षिप्तवंशनालिकेव चतुष्कोणा त्रसनाडी भवति । सा चैकरज्जुविष्कम्भा चतुर्दशरज्जूत्सेधा विज्ञेया । तस्यास्त्वधोभागे सप्तरजवोऽधो- . लोकसंबन्धिन्यः । ऊर्ध्वभागे मध्यलोकोत्सेधसंबंधिलक्षयोजनप्रमाणमेरूत्संधः सप्तरजव ऊर्ध्वलोकसम्बन्धिन्यः। अतः परमधोलोकः कथ्यते । अधोभागे मेरोराधारभूता रत्नप्रभाख्या प्रथमपृथिवी । तस्या अधोऽधः प्रत्येकमेकैकरज्जुप्रमाणमाकाशं गत्वा यथाक्रमेण शर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमा संज्ञाः षड्भमयो भवन्ति । तस्मादधोभागे रज्जुप्रमाणं क्षेत्रं भूमिरहितं निगोदादिपञ्चस्थावरभृतं च तिष्ठति । रत्नप्रभादि आकार है । अब उसी लोक की ऊँचाई-लम्बाई-विस्तार का निरूपण करते हैं-चौदह रज्जु प्रमाण ऊँचा तथा दक्षिण उत्तर में सब जगह सात राजू मोटा और पूर्व पश्चिम में नीचे के भाग में सात राजू विस्तार है, फिर उस अधोभाग से, क्रम से इतना घटता है कि मध्यलोक (बीच) में एक रज्जु रह जाता है फिर मध्यलोक से ऊपर क्रम से बढ़ता है सो ब्रह्मलोक नामक पंचम स्वर्ग के अन्त में पाँच रज्जु का विस्तार है, उसके ऊपर फिर घटता हुआ लोक के अन्त में जाकर एक रज्जु प्रमाण विस्तारवाला रह जाता है । इसी लोक के मध्य में, ऊखल के मध्य भाग से नीचे की ओर छिद्र करके एक बांस की नली रक्खी जावे उसका जैसा आकार होता है उसके समान, एक चौकोर बसनाड़ी है, वह एक रज्जु लम्बी चौड़ी और चौदह रज्जु ऊँची जाननी चाहिये । उस त्रस नाड़ी के नीचे के भाग के जो सात रज्जु हैं वे अधोलोक सम्बन्धी हैं। ऊर्ध्व भाग में, मध्य लोक की ऊँचाई सम्बन्धी लक्ष-योजन-प्रमाण सुमेरु की ऊँचाई सहित सात रज्जु ऊर्ध्व लोक सम्बन्धी हैं। इसके आगे अधोलोक को कहते हैं-अधोभाग में सुमेरु की आधारभूत रत्नप्रभा नामक पहली पृथिवी है । उस रत्नप्रभा पृथिवी के नीचे-नीचे एक-एक रज्जु प्रमाण आकाश जाकर क्रमशः शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महा तमःप्रभा नामक ६ भूमि हैं। उनके नीचे भूमिरहित एक रज्जुप्रमाण जो क्षेत्र है वह निगोद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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