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________________ ६०] वृहद्रव्यसंग्रहः [ गाथा ३३ गुणाधारभूतपरमात्मनो वा संबन्धिनी या तु निर्मलानुभूतिस्तद्विपक्षभूतेन मिथ्यात्वरागादिपरिणतिरूपेण वाऽशुद्धचेतनभावेन परिणामेन बध्यते ज्ञानावरणादि कर्म येन भावेन स भाववन्धो भएयते । 'कम्मादपदेसाणं अण्णोएणपवेसनं इदरो' कर्मात्मप्रदेशानामन्योन्यप्रवेशनमितरः । तेनैव भावबंधनिमित्तेन कर्मप्रदेशानामात्मप्रदेशानां च क्षीरनीरवदन्योन्यं प्रवेशनं संश्लेषो द्रव्यबन्ध इति ॥ ३२ ॥ अथ तस्यैव बन्धस्य गाथापूर्वार्धेन प्रकृतिबन्धादिभेदचतुष्टयं कथयति, उत्तरार्धेन तु प्रकृतिवन्धादीनां कारणं चेति । पयडिविदिअणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बन्धो । जोगा पयडिपदेसा ठिद्रिअणुभागा कसायदो होति ॥३३॥ प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदात् तु चतुर्विधिः बन्धः । योगात् प्रकृतिप्रदेशौ स्थित्यनुभागौ कषायतः भवतः ॥३३॥ व्याख्या- 'पयडिविदिअणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बन्धो' प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदाच्चतुर्विधो बन्धो भवति। तथाहि-ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः अनन्तज्ञान आदि गुणों के आधारभूत परमात्मा की जो निर्मल अनुभूति है उससे विरुद्ध मिथ्यात्व, राग आदि में परिणति रूप अशुद्ध-चेतन-भाव-स्वरूप जिस परिणाम से ज्ञाना-वर णादि कर्म बंधते हैं, वह परिणाम भावबंध कहलाता है। 'कम्मादपदेसाणं अएणोएणपवेसणं इदरो' कर्म और आत्मा के प्रदेशों का परस्पर मिलना दूसरा है, अर्थात् उस भावबंध के निमित्त से कर्म के प्रदेशों का और आत्मा के प्रदेशों का जो दूध और जल की तरह एक दूसरे में प्रवेश होकर मिल जाना है. सो द्रव्यबंध है ॥ ३२॥ अब गाथा के पूर्वार्ध से उसी बंध के प्रकृतिबंध आदि चार भेदों को कहते हैं और उत्तरार्ध से उनके कारण का कथन करते हैं: ___ गाथार्थ :--प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन भेदों से बन्ध चार प्रकार का है। योगों से प्रकृति तथा प्रदेशबंध होते हैं और कषायों से स्थिति तथा अनुभाग बंध होते हैं ॥ ३३ ॥ वृत्त्यर्थ :-‘पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बंधो' प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध इस तरह बंध चार प्रकार का है । ज्ञानावरण कर्म की प्रकृति (स्वभाव) क्या है ? उत्तर-जैसे देवता के मुख को परदा आच्छादित कर देता है (ढक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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