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३४४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
साधु प्राणिमात्र के हितैषी होते हैं । उन्हें किसी के प्रति द्वेष या रोष नहीं होता । वृद्धा को सन्मार्ग पर लाने के लिहाज से वे स्वयं उसके यहाँ भिक्षा के लिए गये । वृद्धा घर में बैठी चर्खा कात रही थी । मुनिराज को आये देख वृद्धा उठी, वन्दना की, सुख- साता पूछी । आहार लेने की प्रार्थना करने लगी । मुनिराज ने कहा - "बुढ़िया मांजी ! आजकल तुम धर्मध्यान नहीं करतीं, क्या बात है ?" बुढ़िया - "यह धर्म आपको ही मुबारक हो ! संभालिए अपने धर्म को । मुझे नहीं चाहिए। बहुत कर लिया धर्म मैंने ! क्या रखा है, इस धर्म में, महाराज !"
मुनिराज - " क्या धर्म ने तुम्हें धोखा दिया है ?"
बुढ़िया - "क्या कहूँ, महाराज ! क्या आप सुनना चाहते हैं ?" साधु – “हाँ, बहन ! सुनने के लिए ही तो आया हूँ ।"
बुढ़िया - " तो सुनिये ! मेरे एक लड़का है । उसकी शादी हुए १२ वर्ष हो गये । आप जानते ही हैं, मैं पहले कितना धर्मध्यान करती थी ? कैसी धर्मसेवा करती थी ? मुझे आशा थी कि धर्म के प्रताप से मेरे पोता होगा । मगर मेरी आशा पूरी नहीं हुई । बहुत धर्म करने पर भी आशा निराशा में पलट गई। इस कारण धर्म के प्रति श्रद्धा घट गई । "
मुनिराज ने समवेदना दिखलाते हुए कहा - " बहन ! सच कहती हो । जो धर्म आशा पूर्ण न करे, सांसारिक सुख-साधन न दे वह धर्म ही कैसा ?"
अपने पक्ष का समर्थन होते देख वृद्धा बोली - "महाराज ! आप सच फरमाते हैं। झूठ कहती हूँ तो बताइए ।"
साधु - "नहीं, बहन ! तुम झूठ नहीं कहती । मगर एक बात तुमसे पूछता हूँ । धर्म ने तुम्हें पोता नहीं दिया, यह माना; किन्तु संसार-सम्बन्धी कुछ बाधाएँ ऐसी होती हैं, जिसके कारण पोता न हुआ हो, इसमें बेचारे धर्म का क्या दोष ? अगर अकेला धर्म ही पोता दे सकता तो वह घर में बहू के आने से पहले ही दे देता । पर ऐसा नहीं; कुछ सांसारिक कारण मिलते हैं, तब पोता होता है । मुझे तो यही संभावना मालूम होती है ।"
वृद्धा - "नहीं महाराज ! मेरी उम्र पक गई है । मैं बुद्ध नहीं हूँ । अगर सांसारिक बाधा कारण होती तो मैं धर्म न छोड़ती ।"
साधु - "बहन ! हो सकता है, तुम्हें ज्ञात न हो । सम्भव है, बहू रोगिणी रहती हो । रोगिणी के भी बच्चा नहीं होता ।"
बुढ़िया - "महाराज ! उसके तो नख में भी रोग नहीं है । स्वस्थ और
पुष्ट है ।"
साधु – “तब तुम्हारे लड़के में कोई त्रुटि हो सकती है ।"
बुढ़िया - "यह भी नहीं है । लड़का स्वस्थ, बलिष्ठ और सुन्दर है । ऐसा न होता तो मैं सन्तोष कर लेती कि लड़के में कमी है तो पोता कैसे हो ?"
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