SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ टिकेंगे, न शरीर टिकेगा, फिर भी आप धर्म में रुचि नहीं करते । बताइये, क्या ये सब धनादि आपके साथ जाएँगे ?" सेठानी कहती-कहती थक गई मगर सेठ बिलकुल नहीं सुनता था। सेठानी का मन घर में प्रचुर सम्पत्ति एवं सुखोपभोग के सभी साधन होते हुए भी उदास रहता था। पड़ौसिनें, सखियाँ, सहेलियाँ भी जब सेठानी का चेहरा उदास देखकर पूछतीं, तब वह यही संक्षिप्त उत्तर देती- "बाह्य सुखों में कोई कमी नहीं है, बहनो ! परन्तु मेरे पतिदेव किसी प्रकार का धर्माराधन नहीं करते, यही दुःख है । ये सब सुखोपभोग के साधन पुण्य समाप्त होते ही नष्ट हो जाएंगे।" सेठानी अपने पति को बहुत समझाती और धर्माचरण करने को कहती। देखिये धर्म शास्त्र में क्या कहा है "उवणिज्जइ जीवियमप्पमायं मा कासि कम्माइं महालयाई।" "यह जीवन शीघ्रातिशीघ्र मृत्यु की ओर चला जा रहा है, अतः महादुर्गति में पहुँचाने वाले कर्म मत कर ।" मगर सांसारिक विषयों के मोह में मुग्ध, लक्ष्मी के मद में मत्त सेठ कह देते-"तू व्यर्थ ही चिन्ता करती है । मैं धर्मस्थान में जाऊँगा तो तुम्हें हीरों एवं सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित कौन करेगा ?'' परन्तु सेठानी के तो रग-रग में धर्म रमा हुआ था, वह बोली- "मुझे न तो हीरों के आभूषण चाहिए और न ही सुन्दर वस्त्र । मुझे धर्म खोकर व्यापार करना अच्छा नहीं लगता । धर्मसाधना में आप जुट जाएँ । मैं खादी की मोटी साड़ी और सादी चूड़ी से ही काम चला लूगी । घर का सारा काम मैं हाथ से कर लूंगी।" सेठ कहने लगा-"अगर मैं तुम्हें बढ़िया वस्त्राभूषण न पहनाऊँ तो समाज में मेरी प्रतिष्ठा ही खत्म हो जाएगी । तुम्हें तो केवल कहना है, समाज के बीच तो मुझे रहना है न ?" सेठानी चाहे जितनी जीवन की अनित्यता समझाती पर संसार की मोहमाया से प्रभावित सेठ को धर्माचरण की बात बिलकूल पसन्द नहीं आती थी । सेठानी अपने ही पुण्य की कमी मानकर सन्तोष करती । वह कहती थी-"मेरे पति को धर्म का रंग लगे, तभी मैं स्वयं को वास्तविक पुण्यवान समझूगी।" ___एक बार एक महान पवित्र और ज्ञानी साधु नगर में पधारे। सेठानी उन्हें वन्दना करने गई । वन्दना करते-करते सेठानी की आँख से आँसू टपक पड़े । यह देख कर मुनिराज पूछने लगे- "बहन ! तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों ?" इस पर सेठानी ने सेठ से सम्बन्धित अपनी कथा कह सुनाई । मुनिराज भी उसकी बात सुनकर गम्भीर विचार में पड़ गये। फिर उन्होंने कहा-"बहन! सेठ से कहना कि एक खास काम के के लिए महाराजश्री ने आपको याद किया है।" सेठानी ने सेठ से यह सन्देश कहा तो सेठ को लगा कि महाराजश्री ने याद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy