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जीवन अशाश्वत है : २७१
स्नेह या शोक के कारण भी स्त्री या पुरुष की बीच में ही मृत्यु हो जाती है। एक धोबी की एक लाख रुपये की लाटरी निकली। धोबी ने शराब पी ली और हर्षावेश में नाचने लगा। अत्यन्त हर्षावेश से उसका हार्ट फेल हो गया । अत्यन्त स्नेह से मृत्यु के भी अनेक उदाहरण हैं । अत्यन्त भय से सोमल ब्राह्मण की मृत्यु श्रीकृष्ण को देखते ही हो गई थी। इसी प्रकार अकस्मात् बिजली गिर जाने से, भूकम्प, बाढ़ आदि प्रकोपों से भी मृत्यु हो जाती है । देवताओं का आयुष्य भले ही निरुपक्रमी हो, मगर वह भी अशाश्वत है । कहा भी है
जइ ता लवसत्तमसुरा, विमाणवासी वि परिवडंति सुरा ।
चितिज्जं तं सेसं संसारे सासयं कयरं ?
अर्थात्-वैमानिक देवों की आयुष्य ३३ सागरोपम की भी है, वैसे ७ लव आयुष्य पूर्ण करके भी वैमानिक च्यवन करते हैं । इसी प्रकार शेष वैमानिकों का भी तथा अन्य देवों का भी चाहे जितना आयुष्य हो, वह भी पूर्ण होने पर टूट जाता है । कौन संसार में शाश्वत है ? निरुपक्रमी आयुष्य वाले युगलिया भी अपर्याप्त-अवस्था में ३ पल्योपम का अपवर्तन करके अन्तर्मुहुर्त में मृत्यु प्राप्त करते हैं। इसलिए संसार में किसी भी जीव का जीवन शाश्वत एवं स्थायी नहीं है । यद्यपि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में वर्तमान काल के मनुष्य की आयु उत्कृष्ट १०० वर्ष से कुछ अधिक और २०० वर्ष से कुछ कम बताई है । तथापि किसी समय तरुण-अवस्था में भी उपर्युक्त तीन अध्यवसाय (अतिहर्ष, अतिशोक, अतिभय) तथा अन्य उपक्रमों द्वारा भी जीवन का अन्त हो जाता है। इसीलिए सूत्रकृतांग सूत्र में बताया है
इह जीवियमेव पासह, तरुण एवासासयस्स तुट्टइ ।
इत्तरवासे य बुज्झह, गिद्धनरा कामेसु मुच्छ्यिा ॥' इस लोक में प्रथम तो अपने जीवन (जीवन काल) को देखो। जीवन अनित्य है, आवीचिमरण से प्रतिक्षण विनाशी है। कई बार तरुण-अवस्था में भी किसी न किसी निमित्त से अकाल में ही आयुष्य टूट जाता है । इस जीवन को भी अल्पकालीन निवास स्थान के समान समझो। ऐसी परिस्थिति में भी हिताहित विवेकविकल मनुष्य काम-भोगों में गृद्ध और मूच्छित होकर नरकादि की यातना प्राप्त करते हैं ।
बन्धुओ ! एक तो मानव-जीवन बहुत ही अल्प है। फिर कब रोग आ घेरेगा, कोई ठिकाना नहीं। फिर सात कारणों से आयुष्य टूट जाता है, कदाचित् मान लें कि किसी का आयुष्य परिपूर्ण हो, फिर भी देवों के आयुष्य की अपेक्षा मनुष्य का आयुष्य कितना अल्प है ? देवों की आयु कम से कम १० हजार वर्ष की और अधिक से अधिक ३३ सागरोपम की है, फिर उनका आयुष्य टूटता नहीं है, उन्हें कोई रोग नहीं
१. सूत्रकृतांगसूत्र श्रु० १, अ० २, उ० ३, गा० ८
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