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यौवन में इन्द्रियनिग्रह दुष्कर : २६७
अगर युवक अपनी इन्द्रियों के साथ मन का स्पर्श न होने दे तो उसके लिए इन्द्रियनिग्रह बहुत ही आसान हो सकता है। मनोजन्य राग-द्वेष के वश न हो तो वह आत्मा का विकास सहज भाव से कर सकता है ।
बन्धुओ ! मैंने सभी पहलुओं से यौवन में इन्द्रियनिग्रह की दुष्करता के कारणों पर तथा सुकरता के उपायों पर विवेचन कर दिया है। अतः आप दुष्करता के कारणों से दूर रहकर सुकरता के उपायों को अपनाइए और सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त कीजिए । महर्षि गौतम इसी कारण इस जीवन-सूत्र में कह रहे हैं
'तारुण्णए इन्दियनिग्गहो य चत्तारि एयाणि सुदुक्कराणि'
तरुणावस्था अथवा यौवन वय में इन्द्रियों का निग्रह करना, उन्हें वश में रखना, अति दुष्कर है। तथा ये चारों पूर्वोक्त (पिछले प्रकरणों में बताई हुई ) बातें भी बहुत दुष्कर हैं।
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