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यौवन में इन्द्रियनिग्रह दुष्कर : २६५
दूसरों को हानि पहुँचाती हैं । जैसे कुर्ते या कोट के बटन मरोड़ना, उंगलियाँ चटकाना, जंभाइयाँ लेते रहना, खटखटाना, पिनों से दाँत या कान कुरेदना, मूछे ऐंठते रहना, नाक में उँगली डालना, दांत से नाखून काटना; किसी के यहाँ जाकर उसके घर में पड़ी वस्तुओं को उलटना-पलटना, किसी के शरीर को धक्के देकर बात करना आदि ऐसी हरकतें हैं, जिनसे इन्द्रियों की शक्ति का निरर्थक अपव्यय होता है। हाथ-पैरों की चेष्टाओं के अलावा मुह से भी कई लोग बेतुके कार्य करते रहते हैं। जैसे बात-बात में गालियाँ देना, असभ्यतासूचक भाषा का प्रयोग करना, अकारण निन्दा-चुगली करना, तम्बाकू या पान खाने के कारण चाहे जहाँ थूकते रहना, जोर-जोर से या जल्दी-जल्दी बोलना, खाते समय चपचप आवाज करना, मुंह से थूक उछालना, जब-तब गाने लगना, अपनी बड़ाई करना आदि बुरी आदतें पड़ जाती हैं तो वे इन्द्रियों की शक्ति का व्यर्थ ही अपव्यय करते हैं । इन आदतों पर नियंत्रण और निरीक्षण की बात जब भुला दी जाती है तब इन्द्रियनिग्रह दुष्कर हो जाता है। ऐसी बुरी आदतों के कारण लोगों को उपहासास्पद और छिछोरा बनना पड़ता है । अपनी शक्ति नष्ट होती है, और दूसरों द्वारा उसे असामाजिक, असभ्य, असावधान और अप्रामाणिक मान लिया जाता है।
इन्द्रियों की शक्तियों का इस प्रकार अपव्यय जीवन को नरक बना देता है। इन्द्रियों की शक्ति इस प्रकार की कुटेबों में खर्च करने के अतिरिक्त कई लोग शारीरिक उत्त जनाओं से उत्तेजित होकर तथा मानसिक निर्बलताओं से प्रेरित होकर इन्द्रियों की बहुमूल्य शक्तियों को यों ही पंचेन्द्रियविषय-भोगों में अत्यधिक आसक्त होकर बर्बाद कर देते हैं । आखिर वे जवानी में ही बूढ़े-से लगने लगते हैं, चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, इन्द्रियाँ अत्यन्त शिथिल, जर्जर एवं मृतवत् हो जाती हैं । ऐसा जीवन नीरस, शुष्क, अपवित्र और अन्धकारमय बन जाता है । शरीर-सुख की क्षणिक तृप्ति के लिए भोगों में सारे शरीर को वह निचोड़ देता है। थोड़े ही दिनों में शरीर निढाल होकर पड़ जाता है, जीवन का सत्त्व बर्बाद हो जाता है, इन्द्रियाँ जवाब देने लगती हैं । अकाल मृत्यु आकर दरवाजे पर दखल देती है। व्यक्ति क्षणिक स्वाद के लिए जीवन की अमूल्य शक्ति को बर्बाद कर देते हैं। साथ ही शरीर की विद्यु त्शक्ति और प्राणशक्ति दोनों का अनावश्यक उपयोग करने से वे अप्रिय, अप्रसन्न, रोगी और चिन्तित दिखाई देते हैं । दो क्षण के इन्द्रिय-सुख के लिए जीवन के अमूल्य हित पर कुठाराघात करना कितनी मूर्खता है ? इन्द्रियों का दुरुपयोग भी दुष्करता का कारण
इन्द्रियनिग्रह की दुष्करता का एक कारण उनका दुरुपयोग भी है। किसी घोड़े को बेलगाम छोड़ दें तो वह अपने सवार को खड्डे में गिराकर ही रहेगा। सवार की सुरक्षा सदैव इसी बात में है कि वह घोड़े के नियन्त्रण को ढीला न करे। ऐसा करने से वह जिस दिशा में जितनी दूर जाना चहाता है, घोड़ा उसे सुरक्षापूर्वक पहुँचा देगा । यदि इन्द्रियों का दुरुपयोग रोककर युवक उनका सदुपयोग करने लगें तो इन्हों से
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