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२६० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
परन्तु विजय सेठ और विजया सेठानी दोनों अपनी इन्द्रिय-शक्तियों के प्रति जागरूक हैं, दोनों अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हैं । विजय सेठ को यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई। उसने मन ही मन ऐसी धर्मसहायिका पत्नी मिलने के लिए अपने को धन्यभागी समझा । उसने स्पष्ट कहा - "देवी ! मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ । जब तुम आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर सकोगी तो क्या मैं लिये हुए ब्रह्मचर्यं नियम में पीछे रहूँगा ? हम दोनों को अनायास ही आत्मसंयम का अवसर मिला है, इसके लिए हम गुरुदेव के प्रति भी उपकृत हैं ।" दोनों के हृदय में आत्म-संयम का पूर्ण चन्द्र प्रकाशित हो रहा था । प्रातःकाल दोनों ने ही गुरुदेव के पास जाकर अपने जीवन में अनायास प्राप्त पंचेन्द्रियनिग्रह रूप ब्रह्मचर्य के सुयोग की बात कही और दोनों ने अपना निर्णय सुनाया - "गुरुदेव ! हम दोनों को आजीवन ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा देकर कृतार्थ कीजिए ।" गुरुदेव ने दोनों की भावना और दृढ़ता देखकर दोनों को आजीवन ब्रह्मचर्य पालन को प्रतिज्ञा करा दी ।
इस प्रकार तारुण्य अवस्था में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन कितना दुष्कर है यह अनुमान लगाया जा सकता है । फिर भी दोनों ने भरी जवानी में अपनी इन्द्रियशक्ति का उपयोग विषय-भोगों की आसक्ति में नहीं किया, पंचेन्द्रियसंयम को सुकर सिद्ध कर दिया ।
इसलिए सतत जागृति रखने वाले युवक के लिए इन्द्रियनिग्रह दुष्कर नहीं है परन्तु जो पहले तो इन्द्रियनिग्रह करता है, किन्तु कुछ वर्षों बाद इन्द्रियों को बिलकुल बेलगाम छोड़ देता है, वह व्यक्ति धोखा खा जाता है । उसके लिए इन्द्रियनिग्रह करना दुष्कर हो जाता है ।
लक्ष्मण अभी युवक थे । विवाह हुए थोड़े ही दिन हुए थे । फिर भी श्रीराम के प्रति उनका अत्यन्त स्नेह था, इस कारण वे वनवास स्वीकार करके श्रीराम के साथ वन-वन में घूम रहे थे । परन्तु अपने पंचेन्द्रियनिग्रह में - ब्रह्मचर्य पालन में पक्के थे । वे जाग्रत रहा करते थे ब्रह्मचर्य पालन में । रामायण में लक्ष्मण के इन्द्रियनिग्रह की जागृति के ३ प्रसंग मिलते हैं
( १ ) पहला प्रसंग है - शूर्पणखा को जब राम की ओर से अस्वीकार कर दिया जाता है, तब वह लक्ष्मण के पास आती है, सुन्दर रूप धारण करके वह उन्हें हावभाव दिखाती है, वश में करने और ललचाने का प्रयत्न करती है, परन्तु लक्ष्मण उसे साफ इन्कार कर देते हैं कि जब तुमने मेरे बड़े भाई के समक्ष उनकी पत्नी बनने का प्रस्ताव रख दिया तो तुम मेरी भाभी हो गईं। भाभी माता के तुल्य होती है । अतः मैं तुम्हें कदापि स्वीकार नहीं कर सकता । यद्यपि लक्ष्मण चाहते तो शूर्पणखा का प्रस्ताव स्वीकार कर सकते थे । परन्तु वे पक्के इन्द्रियनिग्रही थे ।
(२) दूसरा प्रसंग है - पंचवटी का । वन में पंचवटी के आश्रम में राम, लक्ष्मण और सीता ने एक ही कुटिया बनाई थी, जिसमें राम और सीता सोते थे, लक्ष्मण बाहर पहरा देते थे । एक दिन की बात है—– सीता माता अत्यन्त थकी हुई थीं,
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