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२३४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
इस प्रकार की न्यायोपार्जित सम्पदा चाहे थोड़ी ही हो, वह विभूतियुक्त होने से सुख-शान्ति और संतोष पैदा करती है, इसके विपरीत येन-केन-प्रकारेण सम्पदा एकत्रित करने से अनेक दुःख, विपदाएँ और संकट उपस्थित होते हैं । अतः सदाचार और सद्गुणों की विभूति से युक्त मनुष्य निर्भय, निर्द्वन्द्व और निर्दोष रहता है, पाप-ताप भी उसके पास फटकते नहीं। अतः विभूतिसम्पन्न आजीविका से चाहे धन इकट्ठा न हो, प्रचुर भोग-साधनों का संग्रह न हो, पर उसे इतना सन्तोष और आन्तरिक सुख मिलता है, जितना अन्याय-अनीति से उपार्जित विपुल सम्पदा के स्वामी को स्वप्न में भी नहीं मिल सकता । इसलिए आँखें मूंदकर सम्पदाओं के पीछे भागने और उनके लिए लालायित रहने की अपेक्षा विभूतियों का महत्त्व समझना चाहिए । जहाँ विभूतियाँ होंगी, वहाँ सम्पदाएँ अनायास ही प्राप्त हो जाएंगी।
___आज अमेरिका जैसे धनाढ्य देशों में सम्पदाएँ धन के रूप में प्रचुर मात्रा में हैं, परन्तु वहाँ सुख-शान्ति नहीं, नींद नहीं आती, चिन्ता और बेचैनी रहती है । मन की शान्ति के लिए वे गोलियाँ सेवन करते हैं । कई माताएँ भी वहाँ बालकों को शान्त रखने के लिए इन गोलियों का उपयोग करती हैं । इस अशान्ति का मूल कारण यह है कि अमेरिकन लोगों के पास सम्पदाएँ तो हैं, परन्तु विभूतियों की कमी है। अगर सम्पदा के साथ विभूति हो तो वहाँ भी सुख-शान्ति, सन्तोष, तृप्ति आदि की प्रतीति हो सकती है । पर वे लोग काल्पनिक सुख के पीछे पड़कर ज्यों-ज्यों सुखोपभोग के कल्पित साधनों की प्रतिस्पर्धा में पड़ते हैं, त्यों-त्यों उनका दुःख, अशान्ति और बेचैनी बढ़ती जाती है । परन्तु क्या किया जाए ? वहाँ सामाजिक प्रगति का मापदण्ड ही नये-नये वैज्ञानिक साधन जुटाने, औद्योगिक प्रगति करने और तेजी से समृद्धि बढ़ाने को ही मान लिया गया है । सुविधाएँ बढ़ाने से सुख नहीं बढ़ जाता, सुख-शान्ति के लिए केवल बाह्य पदार्थों का ढेर ही पर्याप्त नहीं है, उसके लिए हर सम्भव सद्गुण, सद्विचार और सदाचार की विभूतियों को अपनाना अनिवार्य है। सुख-शान्ति का ताला बाह्य सम्पदाओं की चाबी से नहीं खुलता।
___ एक मनुष्य सुख के मन्दिर का ताला खोलने निकला। उसे किसी महात्मा ने बताया "कि सुख-मन्दिर खुलते ही सुख के दर्शन हो जाएँगे । लो, ये चाबियाँ, सुखमन्दिर के ताले को खोलने के लिए । तुम्हें पसंद हो उस चाबी को लगाकर देखना । १२ घंटे का समय दिया जाता है।"
___ वह व्यक्ति सुखमन्दिर की जो चाबियाँ लेकर आया था, उन पर अलग-अलग नाम लिखे थे। किसी पर लिखा था धन, किसी पर वैभव, किसी पर यश-कीर्ति, किसी पर पद-प्रतिष्ठा और किसी पर महत्वाकाँक्षा तथा एक चाबी पर लिखा था-सद्धर्माचरण । उस मनुष्य ने सबसे पहले 'धन' वाली चाबी उठाई और लगा ताला खोलने। उसने लोगों को देखा कि 'जिसके पास प्रचुर धन होता है, वही सुखसम्पन्न हो जाता है । इसलिए 'धन' ही सुखमन्दिर की चाबी है । उसी से सुख मन्दिर का द्वार खुलेगा।' पर उसने लगातार
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