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________________ ६४. सुखोपभोगी के लिए इच्छानिरोध दुष्कर धर्मप्रेमी बन्धुओ ! आज मैं जीवन की चार सुदुष्कर वस्तुओं में से तृतीय सुदुष्कर वस्तु के सम्बन्ध में प्रकाश डालूगा । महर्षि गौतम ने तृतीय सुदुष्कर वस्तु बताई है-सुखोपभोगी के लिए इच्छानिरोध । गौतमकुलक का यह ८०वाँ जीवनसूत्र है। इसका शब्दात्मक रूप इस प्रकार है "इच्छा निरोहो य सुहोइयस्स" जो सुखोपभोगी है, उसके लिए इच्छानिरोध दुष्कर है। सुखोपभोगी कौन ? इच्छाओं का निरोध सुखसम्पन्नता में क्यों दुष्कर है ? इत्यादि पहलुओं पर आपके समक्ष चिन्तन प्रस्तुत करना चाहता हूँ, ताकि आप इस जीवनसूत्र को भली-भांति हृदयंगम कर सकें। सुखोपभोगी कौन और कैसे ? प्रश्न होता है, प्रस्तुत जीवनसूत्र में किस सुख से सम्पन्न का निरूपण है ? वैसे सुख दो प्रकार के होते हैं; एक होता है-इन्द्रियविषयक सुख और दूसरा होता है-आत्मिक सुख । जो आत्मिक सुख से सम्पन्न है, उसके लिए इच्छाओं का निरोध कोई कठिन नहीं है, किन्तु जो अभी तक इन्द्रियविषयक सुखों से सम्पन्न है, रातदिन इन्द्रिय-विषय सुखों के उपभोग में, सुख-सुविधाओं में निमग्न है, विविध रागरंग, आमोद-प्रमोद आदि में मशगूल है, उसी व्यक्ति को लेकर यहां कहा गया है कि ऐसे सुखोपभोगी के लिए इच्छाओं का निरोध करना अति दुष्कर है। निष्कर्ष यह है कि जो सांसारिक सुखों में निमग्न है, उसके लिए सुखाभिलाषाओं या विविध इच्छाओं को रोकना अतीव दुष्कर है। सांसारिक सुखों के मुख्य स्रोत सर्वसाधारण लोग सांसारिक सुखों के मुख्यतया छह स्रोत मानते हैं-(१) स्वास्थ्य (२) धन (३) यश (४) पद (५) संतान (६) पंचेन्द्रिय विषय । ये सांसारिक सुखों के मुख्यतः ६ स्रोत माने जाते हैं। एक कहावत प्रसिद्ध है'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया।' सर्वप्रथम सुखोपभोग के लिए स्वस्थ शरीर का होना आवश्यक है । जिसका शरीर रुग्ण रहता हो, खाया-पीया भी ठीक तरह से हजम न होता हो, टी० बी०, कैंसर, डायबिटिज, रक्तचाप, दमा या हृदय रोग आदि दुःसाध्य व्याधि से पीड़ित रहता हो, वह व्यक्ति इन्द्रिय-विषयों का उपभोग भी क्या व कैसे कर सकता है ? यदि उसके समक्ष सुख-साधनों का ढेर भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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