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________________ २१२ : आमन्द प्रवचन : भाग १२ कब मिल सकता है ? फिर सर्वस्व को लेने वाला बुद्ध जैसा पात्र कहाँ मिलेगा ? अतः वृद्धा ने अनाथपिण्ड को सम्बोधन करके कहा-"ओ भिक्षु ! आओ, मैं तुम्हें सर्वस्वदान देती हूँ।" यह कहकर वह वृद्धा, जिस मार्ग से अनाथपिण्ड आ रहा था, उस मार्ग पर स्थित एक पुराने वृक्ष के खोखले में उतर गई और अपना एक मात्र वस्त्र हाथ में लेकर अनाथपिण्ड से कहा-"लो, भिक्ष ! यह सर्वस्वदान, अपने गुरु बुद्ध को दो, उनकी इच्छा पूर्ण करो।" ___ अनाथपिण्ड ने उस स्त्री का दिया हुआ वह वस्त्र हर्षपूर्वक अपने पात्र में ले लिया और गद्गद् होकर उससे कहने लगा- "माता ! आपकी तरह सर्वस्वदान देने वाला संसार में कौन होगा ? धन्य है आपको, आपने लज्जानिवारणार्थ एकमात्र वस्त्र, अपने शरीर को वृक्ष के कोटर में छिपाकर, दे दिया। मुझे बहुमूल्य वस्त्र, आभूषण आदि देने वाले और भी अनेकों लोग मिले थे, लेकिन आपके इस सर्वस्वदान के समान वह दान न था । अतः मैने वह छोड़ दिया ।" ... इस प्रकार सर्वस्वदानी वृद्धा की प्रशंसा करता हुआ अनाथपिण्ड बुद्ध के पास आया और उन्हें वह वस्त्र सौंपते हुए कहा-"भगवन् ! यह लीजिए सर्वस्वदान !'' यह कहकर उसने कौशाम्बी में सर्वस्वदान न मिलने, किन्तु जंगल में मिलने आदि का वृत्तान्त आद्योपान्त सुनाया। बुद्ध उस वस्त्र को पाकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उस वस्त्र को मस्तक पर चढ़ाते हुए कहा--"मेरी प्रतिज्ञा अब पूर्ण हुई । अब मैं लोगों को अवश्य ही वह आत्मज्ञान सुनाऊँगा, जो मुझे प्राप्त हुआ है।" इससे यह स्पष्ट जाना जा सकता है कि एक अत्यन्त दरिद्र वृद्धा के द्वारा दिया हुआ सर्वस्वदान कितना दुष्कर है, कितना दुर्लभतम और महत्तम है। ऐसे दान को बराबरी धनिकों का वह दान नहीं कर सकता, जिसमें बहुलांश रखकर अल्पांश दिया जाता है। आप भले ही ऐसे सर्वस्वदानी को दरिद्र कहें, धन और साधनों के अभाव में वह भले ही दरिद्र कहलाता हो किन्तु विचारों और हार्दिक भावों से वह कदापि दरिद्र नहीं हो सकता। साधनों के अभाव में भी दान की अगाध शक्ति उसके हृदय में संचारित होती रहती है । वह वस्तु न देकर भी दान के उत्कट भावों से ही दान देने का महान् लाभ प्राप्त कर लेता है। सामूहिक रूप से कैदियों द्वारा प्रदत्त दुष्कर दान . आजकल कई जेलखानों में कैदियों से शारीरिक श्रम कराया जाता है, उन्हें मनोरंजन कार्यक्रम के अतिरिक्त श्रेष्ठ वाचन, श्रवण, चिन्तन-मनन करने का अवकाश भी दिया जाता है । मजदूरी के रूप में उन्हें दैनिक वेतन भी दिया जाता है, जिससे कि वे सामाजिक बनें, उनमें पवित्र भावना जागे, उनका जीवन सुधरे। गया जेल में कैदी लोग अपने मेहनताने की राशि जमा कराते थे । वर्ष के अन्त तक पहुँचते-पहुंचते यह रकम काफी इकट्ठी हो गई । वार्षिक मजदूरी गया जेल के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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