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दरिद्र के लिए दान दुष्कर : २०७
और हादिक आशीर्वाद देते हुए कहा- "कविवर ! आपका यह काव्य थोड़े समय में ही मैंने उलट-पलटकर देखा, अद्भुत रचना है। यह काव्य आपको विश्व में अमर कर देगा । आपका परिश्रम आपको गौरव प्रदान करेगा । मेरा आशीर्वाद सत्य होगा।"
ब्राह्मण यह कहकर चला गया । माघ ने कहा- "अगर हम इसे निराश लौटा देते, तो अवश्य ही एक विद्वान ब्राह्मण का अनादर हो जाता।"
माघ का यह दान स्थूलदृष्टि वाले लोगों की दृष्टि में बहुत दुष्कर था, परन्तु उदार माघ के लिए वह अत्यन्त सुकर हो गया, क्योंकि वे बुद्धि और मन से निर्धन नहीं थे, वे उदार थे । और सचमुच माघ कवि उस दिन से गौरवशाली एवं समृद्ध होते चले गए । उनके जीवन में फिर अभाव न रहा । किन्तु जो व्यक्ति बौद्धिक एवं मानसिक दृष्टि से सम्पन्न नहीं हैं अपितु केवल भौतिक दृष्टि से सम्पन्न हैं, वे अगर मन से उदार नहीं हैं तो एक तरह से दरिद्र ही हैं, चाहे वे कितने ही बड़े धनिक हों, सत्ताधीश हों, अथवा प्रभुत्वसम्पन्न हो ।
ऐसे धी-दरिद्र के हाथ से दान दिया जाना अत्यन्त दुष्कर है। किन्तु मनुष्य के स्वभाव में उदारता हो तो वह निर्धन होकर भी कुछ न कुछ दान कर सकता है ।
गरीब का दान महत्त्वपूर्ण क्यों ? जो धन से सम्पन्न है, वह व्यक्ति किसी को किसी प्रकार के फल, सुखभोग या स्वार्थ की आकांक्षा से रहित होकर दान देता है, उसका इतना महत्त्व नहीं है, क्योंकि उसके पास धन का अभाव नहीं है, परन्तु वह अपनी कमाई का अमुक अंश ही दान दे पाता है, सर्वस्व नहीं; मगर गरीब व्यक्ति, जो प्रतिदिन जितना कमाता है, उतना ही पारिवारिक निर्वाह में खर्च हो जाता है, वह यदि अपना सर्वस्व या अधिकांश दान दे देता है, तो उसका दान महत्त्वपूर्ण इसलिए माना जाता है कि उसने अपने उपभोग में कटौती करके, इच्छानिरोध करके दान दिया है।
ऋषभपुर नगरवासी अभयंकर सेठ जितना धनिक था, उतना ही दान में शूरवीर था। उनके यहाँ चारुमति नाम का एक नौकर था। वह सेठ-सेठानी को प्रबल भावना से दान देते देख मन में सोचा करता- “धन्य है, इनको ! कितने उत्कट भाव से दान देते हैं ? परन्तु मैं अभागा हूँ। क्या कर सकता हूँ ? मेरे पास कुछ भी द्रव्य नहीं है । अगर द्रव्य होता तो मैं भी दान देता।'
कई बार मनुष्य के हृदय में दान देने की भावना जागती है, परन्तु वह उस भावना को दबा देता है । किसी समय तो वह अपने मन को यों मना लेता है, जब मुझसे इतने बड़े-बड़े धनिक दुनिया में पड़े हैं, वे सब तो दान नहीं देते, मैं तो उनके सामने तुच्छ हूँ, मैं अपनी थोड़ी-सी पूंजी में से कैसे दान दे सकूगा ? मैं धनिक ही कहाँ हूँ, जो इस प्रकार से दान हूँ ! परन्तु गरीब अपनी शक्ति को भूल जाता है
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