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________________ हिंसा में आसक्ति से धर्मनाश : १४६ वह कितना बड़ा पाप प्रयोगशालाओं में विज्ञान के नाम पर कर रहा है। लोगों को, विशेषतः भारतीयों को अहिंसक पद्धति से विज्ञान का विकास करना चाहिए; क्रूरता, नृशंसता और हत्या की पद्धति पर नहीं; क्योंकि उससे मानवीय गुणों का अन्त होता है। जिप्स दिन ये गुण न रहेंगे, उस दिन मनुष्य स्वयं ही अपना शत्रु हो जायेगा।" मनुष्य की क्रूरता और बर्बरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अकेले ब्रिटेन में चिकित्सा सम्बन्धी खोजों में प्रतिवर्ष ५० लाख पशुओं और जीवजन्तुओं का जीवन नष्ट किया जाता है। इसमें से ८७ प्रतिशत वे जोव होते हैं, जिनकी चीर-फाड़ बेहोश किये बिना ही होती है। उसे हत्या नहीं, क्रन्दन, तड़पन और घोर उत्पीड़न ही कहना चाहिए। निरीह प्राणियों की यह हत्या क्या आकाश को शुद्ध और शान्त रख सकेगी? उससे प्राकृतिक परमाणुओं की ऐसी हलचल होगी जो पृथ्वी को उद्दण्ड और उच्छृखल मानवों से पाट देगी। विषाणुओं की मात्रा इतनी बढ़ जाएगी कि बचे हुए मानवों को बीमारियाँ खा जाएँगी। एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में, जहाँ दवाइयाँ बनती हैं, वहाँ औषधि शारीरिक क्रिया, अन्तरिक्ष आदि के प्रभाव को मापने से लिए परीक्षण किये जाते हैं। वहाँ तरह-तरह की पीड़ा और यन्त्रणाएँ देते हुए पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों के साथ हो रही निर्दयता को आप देखें तो कहेंगे, इन सुविधाओं और उपलब्धियों की अपेक्षा हम अभावग्रस्त रहे होते तो अच्छा था । हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एक प्रयोग कुत्तों पर किया गया। कई कुत्तों को जंजीर से बाँधकर आग की लपटों म फेक दिया गया । ५-७ दिन तक कुत्ते उन चिनगारियों में तड़प-तड़प कर झुलसते रहे । उसी अवस्था में उन्हें अधमरा करके छोड़ दिया गया। ऐसे ही प्रयोग में कोलम्बिया विश्वविद्यालय में कुत्तों के हाथ-पैरों को हथौड़ों से इस तरह कूटा-पीटा और कुचला.गया, जैसे लोहार लोहे को घन से पीटता है । अधिकांश कुत्ते उसी दिन मर गये। तीन कुत्ते बचे, उन्होने भी घुट-घुटकर प्राण त्यागे । प्रयोगों के दरम्यान इन्हें पीटना, भूखे मारना, जलाना, सर्दी में ठिठुराना, आँख फोड़ना, जब तक थककर बेहोश न हो जायें तब दौड़ाना, पानी में डुबो देना, सोने न देना, चमड़ा उधेड़ देना, शरीर के किसा हिस्से को विषाणुओं के इन्जेक्शन देकर उस हिस्से को सड़ाकर इन्जेक्शन तैयार करना, शरीर को जीवित काटकर अनेक प्रकार की दवाइयाँ प्राप्त करना आदि सब हिंसाएँ विकास के नाम पर होती हैं। जान हापकिन्स यूनिवर्सिटी के अन्वेषक बिल्लियों पर प्रयोग कर रहे हैं। उनकी चमड़ी पकड़कर नोंचा और झकझोरा जाता है, कान-पूछ खींचकर पिटाई की जाती है । पूंछ को इतनी जोर से औजार से दबाया जाता है कि खून निकल आता है । इस तरह तड़पा-तड़पाकर मारा जाता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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