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. हिंसा में आसक्ति से धर्मनाश | १३६ "एसो सो पाणवहो चंडो रुद्दो खुट्टो अणारिओ निग्घिणो निस्संसो महब्भओ।"
___"यह प्राणवध (हिंसा), चण्ड (तीक्ष्ण) है, रुद्र (भंयकर) है, क्षुद्र (तुच्छ) है, अनार्य है, निघृण (निर्दय) है, नृशंस है, एवं महाभययुक्त है।"
कहा जाता है-नादिरशाह जब अपनी विजय-यात्रा से लौट रहा था, तो उसके जन्म-दिन के उपलक्ष में एक गांव में रात को उत्सव मनाया गया और निकटवर्ती ४-६ गाँव दूर से कुछ वेश्याएं नृत्य करने आयीं। जब आधी रात को वे वेश्याएँ वापस लौटने लगी तो उन्हें डर लगा क्योंकि अमावस की अंधेरी रात थी। रास्ते में अंधेरा था। नादिरशाह ने उन्हें भयभीत होते देख कहा-"क्यों घबड़ा रही हो, मैं अभी तुम्हारे लिए रास्ते भर में उजाले का प्रबन्ध करा देता हूँ।" उसने अपने सैनिकों से कहा- "इनके रास्ते में जितने भी गाँव पड़ते हैं, सबमें आग लगा दो, ताकि रोशनी हो जाए।"
सैनिक भी जरा सहमे कि ऐसा अटपटा आदेश ! न मालम कितने औरतबच्चे मर जाएँगे, कितने लोग उजड़ जाएँगे, कितने झुलसकर जल जाएँगे, कितने खेत जल जाएँगे, घर में बँधे हुए कितने पशु छटपटाकर मर जाएँगे। लेकिन नादिरशाह ने कहा--"देर मत करो, झटपट इन्हें अपने घर पहुँचना है। आने वाली पीढ़ी याद रखे कि नादिरशाह के दरबार में नाचकर वेश्याएँ लौटती थीं, तो अंधेरी रात में भी उनके रास्ते रोशन कर दिये जाते थे।" सैनिकों को आदेश का पालन करना पड़ा। छह गाँवों में आग लगा दी गई, सारे खेत जला दिये गये । सभी घर स्वाहा हो गये ।
यह था हिंसा का प्रचण्ड रूप ! हिंसा का यह नंगा और स्वच्छंद नाच था । प्राणवध का यह अनार्य और निर्दय खेल था। क्या नादिरशाह ने दूसरों की जिन्दगी की परवाह की थी ? क्या उसने यह कठोर आदेश, क्षुद्र स्वार्थपूर्ण हुक्म दूसरे के प्राणों से खिलवाड़ करने हेतु नहीं दिया था ?
अगर इस प्रकार की बर्बरतापूर्ण चेष्टाओं को कोई व्यक्ति न्याय या धर्म कहने लगे तो आप उसे मान लेंगे ? क्या आपकी अन्तरात्मा गवाही देगी कि ऐसे सत्ताधीश का यह रवैया धर्म या न्याय है। परन्तु उस समय तो नादिरशाह के हुक्म को भगवान् का हुक्म माना गया था, उसके हुक्म को टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी। परन्तु उन गाँव वालों की अन्तरात्मा से पूछे कि नादिरशाह का आदेश उन्हें हिंसा लगा था, या अहिंसा? उन्होंने उसे राजा का धर्म या न्याय माना या अधर्म-अन्याय ? भले ही वे दुर्बल होने के कारण कुछ भी विरोध न कर सके, संगठित होकर प्रतिवाद न कर सके, परन्तु उनके हृदय की आहे क्या उसे पापी नहीं कहेंगी? ऐसा हिंसक व्यक्ति स्वयं भयभीत रहता है, उसकी हिंसा दूसरों के विषय में शंकाशील बना देती है, हर समय चिन्तित भयभीत और आतंकित भी रहता है वह ।
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