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वैश्या-संग से कुल का नाश : १३१
व्यभिचार से अशुद्ध हो जाएँगे । विकृति को पनपने देकर शुद्ध संस्कृति को कभी जीवित नहीं रखा जा सकता।।
वैश्या-संस्था को अधिक प्रोत्साहन देना परिवार, समाज एवं राष्ट्र की गहिणियों में विकृत खान-पान, ऐश-आराम, फैशन और विलास को न्यौता देना है। फिर तो वेश्याओं की देखा-देखी वे भी उसी फैशन और विलास का अनुसरण करेंगी। उनके पुरुष जब वेश्यागृहों में जाकर क्षणिक स्पर्शसुख का आनन्द लूटेंगे तो वे भी परपुरुषों को आकर्षित करके घर में ही वेश्यावृत्ति करके स्पर्शसुख का आनन्द नहीं लूटेंगी?
___क्या इस प्रकार वेश्यावर्ग को या वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने से पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय कुल का गौरव सुरक्षित रह सकेगा?
प्रबल वेश्यासक्ति से कुल विनाश के कगार पर एक जमाना ऐसा था कि राजा-महाराजा लोग आए दिन उत्सवों में वेश्याओं को नृत्य, गीत, वाद्य द्वारा लोकरंजन करने के लिए बुलाते थे, उन्हें बहुत बड़ी राशि पुरस्कार में देते थे तथा धनिक वर्ग के लोग भी अपने पुत्रों के विवाहों में रंडियों को नाच-गान करने के लिए बुलाते थे । इसका बहुत ही बुरा असर दर्शकों पर पड़ता था। प्रायः कुलीन घरानों के, धनाढ्य घरों के बहुत-से युवक वेश्यासक्त होकर रात-दिन उन्हीं के यहाँ पड़े रहते थे। उनका सारा जीवन बर्बाद हो जाया करता था, साथ ही उनका सारा कुटुम्ब भी धन से, इज्जत से, चिन्ता से बर्बाद हो जाता था। इस सारे कुल की बर्बादी का कारण बनती थी--युवक के द्वारा की हुई वेश्या-आसक्ति।
___ राजगृह के जिनदत्त सेठ का परिवार केवल धनिक ही न था, कुलीन, संस्कारी, श्रेष्ठ आचार-विचार और शुद्ध व्यवहार में अग्रणी था। उनके कुल में सातों कुव्यसनों का त्याग परम्परा से चला आ रहा था। किन्तु उनके इकलौते पुत्र को वेश्यागमन का दुर्व्यसन लग गया था। मगर वह जाता था चुपके-चुपके रात को ही, क्योंकि उसके मन में पिता और जाति का भय था। परन्तु क्या वेश्यासेवन जैसा पाप रुई लिपटी आग की तरह छिपा रह सकता है ? एक दिन किसी ने उसे वेश्या के यहाँ जाते देखकर जिनदत्त सेठ से कह दिया-'सेठजी ! अब तक आपका कुल कलंकरहित था, परन्तु अब आपका पुत्र वेश्यागमन के कलंक से उसे कलंकित करने जा रहा है । आप उसे इस दुष्कृत्य से अवश्य रोकें।"
सेठ जिनदत्त को यह सुनकर बहुत धक्का लगा। उसने पुत्र को एकान्त में बुलाकर कहा- "बेटा ! अपना कुल सदा से पवित्र, सभी व्यसनों से मुक्त, शुद्ध, संस्कारी और सदाचारी रहा है। अपने कुल में अनेक धर्मात्मा महापुरुष हुए हैं। हमारा कुल जूआ, चोरी, मद्यपान, वेश्यासंग, आदि बुराइयों से सदैव दूर रहा है । वेश्यासंग वही करते हैं, जो अकुलीन, असंस्कारी और धर्मकर्म से हीन हों। ऐसा करके वे समाज में बदनाम होते हैं, अपने कुल को भी बदनाम करते हैं । वेश्या तो सबकी जठन है।
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