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________________ वेश्या-संग से कुल का नाश : १२५ इसलिए कसबन भी कहलाती हैं। आश्चर्यजनक लोकविरुद्ध कार्य करती हैं, इसलिए 'तायफोइ' भी कहलाती हैं । इसी प्रकार ये वृद्ध, युवक, काला-गोरा, रोगी, हत्यारा आदि सभी पात्रों को धन के बदले में अपनाती हैं, तथा घृणा की पात्र होने के कारण 'पातरियाँ' भी कहलाती हैं। वेश्याओं के संसर्ग से बुरा हाल वेश्या का संसर्ग किसी भी मनुष्य के लिए अच्छा नहीं होता । साधुओं के लिए तो यहाँ तक बताया गया है कि वेश्याओं के मोहल्ले में भी न जाए, न उधर से होकर विचरण करे । 'संसर्गजः दोषगुणा भवन्ति' इस न्याय के अनुसार वेश्या का संसर्ग भी बहुत बुरा है । फिर उसका सेवन या उसके प्रति आसक्ति तो और भी बुरी है । वेश्यागमन मे कदाचित् क्षणिक दैहिक सुख प्राप्त हो जाए, किन्तु बदले में कष्ट और रोग के रूप में भारी मूल्य चुकाना पड़ता है । एक घटना समाचार पत्र में पढ़ी थी । बम्बई में जयपुर के ४-५ मेहमान एक कुलीन गृहस्थ के यहाँ टहरे हुए थे। रात को वे सैर-सपाटे के लिए निकले । पूछते-पूछते वे वेश्याओं के मोहल्ले में पहुँच गये । वह मोहल्ला ही ऐसा था कि जहाँ प्रतिदिन दो-चार लूट-खसोट, मार-पीट एवं हत्या की वारदातें हुआ करती थीं। उन सफेदपोशों को देखते ही एक दलाल उनके पीछे लगा गया। वे उसके साथ सीधे एक कोठे पर चढ़ गये । वहाँ देखा तो नीचे दर्जे की कुछ भयावनी-सी औरतें मेकअप किये हुए बैठी थीं। कुछ गुण्डे भी वहाँ पड़े थे । उनका यह ढंग देखकर आगन्तुक लोग वहाँ से खिसकने लगे। परन्तु गुण्डे उन्हें कैसे जाने देते ? उन्होंने उनकी घड़ी, चेन, दुपट्टा, कोट, रुपया-पैसा वगैरह सब छीन लिया, तब वहाँ से जाने दिया। जब वे लोग सीढ़ियों से उतरने लगे तो वे दुराचारिणी स्त्रियाँ उन पर जूते फेंकने लगीं। इस पर एक साथी ने वापस लौटकर एक बाँस उठाया और एक गुण्डे पर दे मारा । फिर दूसरे साथी भी आ पहुँचे, वे भी टूट पड़े । इस तरह कइयों के सिर फूटे । स्त्रियों के चिल्लाने से पुलिस दल आ पहुँचा और उन गुण्डों, व्यभिचारिणी औरतों तथा सैर करने वाले लोगों को पकड़कर थाने में ले गया। वहाँ उन्हें रात भर हवालात में बन्द रखा। सुबह १० बजे सब हाल सुनकर उन्हें छोड़ा गया। किसी तरह राम-राम करके वे जहाँ ठहरे थे, वहाँ आए और वहाँ से सीधे जयपुर पहुंचे। यह बुरा हाल केवल वेश्या-संसर्ग के कारण हुआ, वेश्यागमन और वेश्यासक्ति से तो और भी बुरा हाल होता है । वेश्यागामी पुरुषों की दशा वेश्यागामी पुरुष अक्सर अन्य दुर्व्यसनों में भी फँसा होता है, क्योंकि वेश्याएँ भी प्रायः शराब पीती हैं, मांसाहार भी करती हैं, और कभी-कभी किसी धनिक की हत्या करके या विष देकर उसे समाप्त कर देती हैं, और फिर उसका माल हजम कर लेती हैं। चोरों और डकैतों से भी वेश्या सम्बन्ध रखती हैं । इसलिए चोरी और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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