________________
१२४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
देह का सौदा कर लेती है। माधव-कामकन्दला-प्रबन्ध में कामकन्दला गणिका को अन्य गणिकाएँ समझी रही हैं, उससे वेश्या की वेश्यावृत्ति का चित्र स्पष्ट हो जाता
दाम सरीसुं काम ॥ ध्र व ॥ सिउ कोढ़ी, सिय दूबलु, सिउ सफेद, सिउ श्याम ।
एह कथा शी आपणइ ? दाम सरीसु काम । जरा-जुरण जोब्बन किसिउ, सिउ गोरउ, सिउ स्याम ?
एह कथा शी आपणइ, दाम सरीसुं काम । सुखी-दुखी नय पूछीइ, किणि पेरे लियाविउ दाम ?
एह कथा शी आपणइ, दाम-सरीसुं काम । भावार्थ स्पष्ट है । शरीर और सौन्दर्य का खुला सौदा करना ही वेश्या का काम है । उसे समाज, राष्ट्र, विश्व के बनने-बिगड़ने, उत्थान-पतन, गरीबी-अमीरी जीने-मरने से कोई मतलब नहीं ।
__ कैसी है यह लुटेरी, जो अपना तन बेचकर मनुष्य का धन, बल, चरित्र और आरोग्य छीन लेती है।
___ अतः वेश्या पतित से पतित स्त्री है, स्त्री जाति का कलंक है, पुरुष जाति का कोढ़ है । यह समाज की जूठन है । गुह्य रोगों का धाम है । वसुनन्दि श्रावकाचार में कहा है
रत्तणाऊण णरं सव्वस्सं हरइ वंचणसएहिं ।
काऊण मुयइ पच्छा पुरिसं धम्मट्ठि-परिसेसं ॥ –वेश्या मनुष्य को अपने पर आसक्त जानकर उससे सैकड़ों छल-कपटों द्वारा उसका सर्वस्व हरण कर लेती है और अस्थि-चर्ममात्र शेष रह जाने पर उसे छोड़ देती है । वह पुरुष की सम्पत्ति और प्रतिष्ठा लूटकर उसे ऐसे फेंक देती है, जैसे कोई गन्ने का रस चूसकर उसे कूड़ेदान में फेंक देता है।
. प्राचीन काल में अनेक धर्म-ढोंगियों ने वेश्या को तथाकथित धर्म को या देवी-देवों की ओट में पनपने दिया, जिसके परिणामस्वरूप राजाओं, सत्ताधीशों, धनाढ्यों के प्रश्रय में गणिका संस्था फली-फूली । उसे नृत्यकला, संगीतकला और अन्य गायन-वादनकला में प्रवीण होने के कारण विभिन्न उत्सवों वगैरह में आमंत्रित किया जाता था। दक्षिण भारत की देवदासी प्रथा इसी का ही परिवर्तित रूप है । रामजनी, देवदासी, भगतन, मुरली, ये देवालयों में देवी-देवों के लिए अर्पित होकर नृत्य, गीत, वाद्य द्वारा लोकरंजन करती हैं, इसके अतिरिक्त पुजारियों एवं आगन्तुक भक्तों की वासनापूर्ति का काम भी। देह बेचने का निन्द्य कसब-धन्धा करती हैं,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org