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चेनिंग, बॉबी, पिटरसन, सेनेका, विलियम राल्फ, इन्गे, हॉम, सेण्ट मेथ्यू, जार्ज इलियट, शेली, पोप, सिसिल, कॉस्टन, शेक्सपियर प्रभृति शताधिक व्यक्तियों के चिन्तनसूत्र भी उद्धृत किये गये हैं । जिससे यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि आचार्य सम्राट का अध्ययन कितना गम्भीर व व्यापक है । पौराणिक, ऐतिहासिक रूपकों के अतिरिक्त अद्यतन व्यक्तियों के बोलते जीवन - चित्र भी इसमें दिये हैं जो उनके गम्भीर व गहन विषय को स्फटिक की तरह स्पष्ट करते हैं । यह सत्य है कि जिसकी जितनी गहरी अनुभूति होगी उतनी ही सशक्त अभिव्यक्ति होगी । आचार्यप्रवर की अनुभूति गहरी है तो अभिव्यक्ति भी स्पष्ट, सशक्त और प्रभावशालिनी है ।
मैंने आचार्यप्रवर के प्रवचनों को पढ़ा है । मुझे ऐसा अनुभव हुआ है कि प्रवचनों का सम्पादन भाव, भाषा और शैली सभी दृष्टियों से उत्कृष्ट हुआ है । सम्पादन कला - मर्मज्ञ, कलम - कलाधर श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' ने अपनी सम्पादन कला का उत्कृष्ट रूप उपस्थित किया है । गौतम कुलक का स्वाध्याय करने वाले जब इन प्रवचनों को पढ़ेंगे तो उनके समक्ष इसके अनेक नये नये गम्भीर अर्थ स्पष्ट होंगे । इन प्रवचनों में सिर्फ उपदेशक का उपदेश - कौशल ही नहीं, बल्कि एक विचारक का विचारवैभव तथा अनुशीलनात्मक दृष्टि भी है । इससे प्रवचनों का स्तर काफी ऊँचा व विचार-प्रधान बन गया है ।
इन प्रवचनों को पढ़ते समय प्रबुद्ध पाठकों को ऐसा अनुभव भी होगा कि इन प्रवचनों में उपन्यास और कहानी साहित्य की तरह सरसता है, दार्शनिक ग्रन्थों की तरह गम्भीरता है । यदि एक शब्द में कह दिया जाय तो सरलता, सरसता और गम्भीरता का मधुर समन्वय हुआ है । ऐसे उत्कृष्ट साहित्य के लिए पाठक आचार्य प्रवर का सदा ऋणी रहेगा तो साथ ही ऐसे सम्पादक के श्रम को भी विस्मृत नहीं हो सकेगा ।
मुझे आशा ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि प्रस्तुत आनन्द प्रवचनों के ये सभी भाग सर्वत्र समादूत होंगे। इन्हें अधिक से अधिक जिज्ञासु पढ़कर अपने जीवन को चमकायेंगे |
- देवेन्द्र मुनि शास्त्री
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