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________________ मद्य में आसक्ति से यश का नाश : ११५ परम्पराओं, शिष्ट आचारों का त्याग और अनिष्ट, निन्द्य आचार का धृष्टतापूर्वक सेवन करना । (५) बुद्धिभ्रष्ट, विवेकच्युत होकर हास्यास्पद प्रवृत्तियाँ करना । (६) जान-बूझकर आध्यात्मिक पतन कर लेना । अब इन पर क्रमशः विचार कर लें । पतित और पापी बनकर जीना मद्यपान से व्यक्ति अपने धर्म और नीति से पतित हो जाता है । जब मद्यपान के कारण व्यक्ति परवश हो जाता है, तब उसके मन और बुद्धि का संतुलन समाप्त हो जाता है, मस्तिष्क पर कोई नियन्त्रण नहीं रहता । इस कारण मद्यपान करने वाले हिंसा, झूठ, चोरी, परस्त्रीगमन, जुआ, व्यभिचार आदि पापों की ओर सहसा प्रवृत्त हो जाते हैं। समाज में किसी भी पापी को प्रशंसनीय नहीं माना जाता । उसका पाप ही उसके अपयश के ढोल पीटता रहता है । इस प्रकार मद्यपान से यश का नाश और अपयश की वृद्धि स्वतः हो जाती है । बीरबल ने देखा कि बादशाह अकबर को शराब पीने की आदत के कारण राज्य में बदनामी होती है । सभ्य और धार्मिक लोग इस आदत को निन्दनीय मानते हैं । यह आदत न छुड़ाई तो राज्य कार्य ठीक से नहीं चला पाएँगे । परन्तु बादशाह की शराब की आदत छुड़ाना मामूली काम न था । वह युक्ति के बल पर ही छुड़ाई जा सकती थी । बीरबल इसी अवसर की ताक में था । इसी दौरान एक दिन अकबर को शराब पीने की इच्छा हुई। उन्होंने बीरबल से शराब की बोतल लाने को कहा । बीरबल ने युक्तिपूर्वक सोचा - बादशाह शराब पियेंगे तो मांस खाने की इच्छा होगी, अत मांस खरीदा । फिर सोचा - शराब पीने पर बुद्धि पर नियन्त्रण न होने से स्त्रीसंगम की इच्छा होगी, अतः एक वेश्या को तय करके साथ में लिया । फिर सोचाशराब पीने के बाद फेफड़े, हृदय, गुर्दे, लीवर आदि के रोग भी हो सकते हैं, इसलिए एक हकीम को भी साथ लिया। फिर सोचा - शराब पीने से बादशाह की मृत्यु भी हो सकती है । इसलिए साथ में कफन के लिये एक कपड़ा भी ले लिया । इन सबको एक बैलगाड़ी में रखकर व बिठाकर शाही महल की ओर बैलगाड़ी हँकवाकर ला रहा था । बादशाह ने यह सब देखा तो आश्चर्य से पूछने लगा - " बीरबल ! मैंने तो तुमसे शराब मँगवायी थी, तुम इन सबको और इन चीजों को क्यों और किसलिये साथ में लाए हो ?" बीरबल - " हजूर ! मांस, वेश्या, हकीम और कफन, इन चारों की जरूरत शराब पीने के बाद पड़ेगी ही । इसलिए इन्हें भी साथ ही ले आया हूँ, ताकि फिर भाग-दौड़ न करनी पड़े । " अकबर बादशाह - " क्या मतलब है इनका ?" बीरबल ने चारों को लाने का पृथक-पृथक कारण समझाया । अब तो बादशाह की समझ में आ गया था कि शराब किस प्रकार से मनुष्य को पतित बनाकर अपयश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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