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मृत और दरिद्र को समान मानो ३४७ मिथ्यात्वी देव-"नहीं बना सका इन्हें भाग्यवान ! इन भाग्यहीनों को तो उलटी बात सूझती है।"
- सम्यक्त्वी देव-"तो चलो, हम किसी भविष्योज्ज्वल गरीब आदमी की परीक्षा करके देख लें।"
दोनों देव नगर में आये । वहाँ मार्ग में एक अन्धा भीख मांग रहा था । यह माता-पिता और घर से वंचित है, दरिद्र है । सम्यक्त्वी देव ने अवधिज्ञान से देखा कि इसने शुभकर्म किये हैं, इस कारण इसका अब भाग्योदय होने वाला है। इसे वरदान देना चाहिए । दोनों देव बात-चीत करते हुए उस अन्धे के पास से गुजरे। अन्धे ने विनयपूर्वक पूछा-'भाई साहब ! आप कौन हैं ?"
दोनों देव बोले-"हम सिद्धपुरुष हैं। जो चाहो सो मांग सकते हो, पर वरदान एक ही मांगना होगा।"
अन्धा भिखारी बुद्धि से दरिद्र नहीं था, उसने बहुत कुछ सोच-विचारकर कहा-"मुझे यही वरदान दे दें कि मैं अपने पोते को सतमंजिले मकान में सोने के थाल में खीर-खांड का भोजन करते देखू ।"
प्रसन्नचित्त एवं आशापूर्ण अन्धे भिखारी की वरयाचना सुनकर दोनों देव बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने 'तथास्तु' कहा । अचिन्त्य शक्ति के प्रभाव से अन्धे की आँखें खुल गई, धन और सोना मिल गया, सात मंजिला मकान भी खड़ा हो गया। विवाह हो गया और कुछ ही वर्षों में उसके बेटा और पोता भी हो गया। तन, मन और धन सभी प्रकार की दरिद्रताएं दूर हो गईं। ये हैं दुर्भाग्य और सौभाग्य के परिणाम !
नैतिक दृष्टि से दरिद्र भी भाग्यहीन कई लोग तन की दृष्टि से तो दरिद्र नहीं होते, परन्तु नैतिक दुर्बलताएं उन्हें दरिद्र और भाग्यहीन बना देती हैं । धन से दरिद्र नैतिक दुर्बलताओं के कारण होता है, परन्तु किसी हितैषी के समझाने पर भी वह अपने अनैतिक कार्यों, दुर्व्यसनों या बुरी आदतों को नहीं छोड़ता, वह अपनी गलती नहीं सुधारता। यही कारण है कि वह दरिद्रता के दुष्परिणाम भोगता रहता है । वह मद्यपान, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, चोरी, डकैती, लूटपाट, जुआ, मांसाहार, बेईमानी, ठगी, चोरबाजारी, अन्याय, अत्याचार, शोषण आदि नैतिक दुर्बलताओं का शिकार बनकर अधिकाधिक दरिद्रता के शिकंजे में फंसता जाता है । चोरी आदि से भले ही थोड़ा-सा क्षणिक संतोष उसे हो जाये, परन्तु चोरी आदि अनैतिक उपायों से प्राप्त धन अधिक नहीं टिकता, वह बीमारी, मुकदमेबाजी आदि रास्तों से निश्चित ही चला जाता है, या सरकार छीन लेती है; बदनामी, हैरानी, अपकीर्ति, अधर्मवृद्धि, पापकर्मबन्ध आदि होता है सो अलग। अतः दरिद्रता के निवारण का मूल उपाय सदाचार, नैतिकता और शुद्धधर्म की राह पर चलना है । इसी से ही व्यक्ति के पुण्य प्रबल होंगे, भाग्य खुलेंगे।
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