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________________ मृत और दरिद्र को समान मानो ३४५ ज्वाला में वृद्धि करने के लिए आहुति डालती रहती है । इस प्रकार फैशन, विलास, दुर्व्यसन, खोटे रीति-रिवाज, अमीरी का प्रदर्शन, कर्जदारी, कम आय, अधिक खर्च, परिवार में श्रमनिष्ठा कम, आलस्य, आत्महीनता आदि सब मिलकर भारत की अधिकांश जनता के दारिद्रय में वृद्धि करती रहती है । संकल्प के वाले को इन सब कारणों के रहते भारत में कंगाली नहीं आएगी तो क्या होगा ? जब तथाकथित दरिद्रों के समक्ष दरिद्रता निवारण की पूर्वोक्त योजना रखी जाती है, गरीबी हटाने के लिए पूर्वोक्त अपव्ययों को दूर करने के लिए कहा जाता है तो वे बगलें झाँकने लगते हैं, उलटे हितकर उपदेश देने कोसा जाता है, उसे अपने मार्ग का रोड़ा समझा जाता है । अधिक संतानों का बहुत बड़ा कारण है । परन्तु संयमपूर्वक संतति नियमन के लिए कोई कहता है तो तथाकथित दरिद्रता के शिकार लोगों को बहुत ही बुरा लगता है। वे दरिद्रतानिवारण के सात्त्विक उपायों को अपनाने के लिए तैयार नहीं, तब कैसे भाग्य खुलेगा और कैसे लक्ष्मी के दर्शन होंगे ? बोझ भी दरिद्रता का दीपावली के अवसर पर लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, परन्तु उसी लक्ष्मी को पटाखे, आतिशबाजी, फिजूलखर्ची आदि में खर्च करके अपने घर से धक्का देकर निकाल देते हैं । क्या यह लक्ष्मी का अपमान नहीं है ? घर में आई हुई लक्ष्मी शुभ कार्यों में व्यय करने के लिए ही बहियों में, घर के द्वार पर लिखा जाता है— 'लाभ' और 'शुभ' | लाभ के साथ शुभ कार्य न हो तो लक्ष्मी कहाँ से टिकेगी ? बन्धुओ ! भाग्य खुले बिना लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती और भाग्य खुलने के लिए कई कारणों का जिक्र मैंने संक्षेप में कर दिया है । शुभ कार्यों के करने से भाग्य खुलते हैं, तब सभी बातें अनुकूल हो जाती हैं । एक बार गुजरात के मूक लोकसेवक रविशंकर महाराज कुछ अध्यापकों से मिले । उनकी समस्याएं सुनीं। सभी कहने लगे - " हमारा वेतन प्रतिमास दस रुपया और बढ़ जाए तो हम अपना निर्वाह ठीक तरह से कर सकें ।" रविशंकर महाराज ने उनकी वृत्ति प्रवृत्ति देखकर कहा - " अगर मेरी बात मानो तो मैं तुम्हारा वेतन प्रतिमास दस रुपया अधिक करा सकता हूँ ।" उन्होंने कहा - "हाँ, हाँ, क्यों नहीं मानेंगे आपकी बात ? आप बताइए तो सही, वेतन वृद्धि का उपाय ?" सभी अध्यापक बीड़ी पीते थे । साथ ही जर्दा सुर्ती खाते थे । अत: रविशंकर महाराज ने पूछा—“अच्छा, यह बताइए तो, आप प्रतिमास कितने रुपये बीड़ी, माचिस, जर्दा- सुर्ती आदि में खर्च करते हैं ?" एक अध्यापक ने कहा - " हिसाब तो नहीं लगाया, परन्तु अनुमान से हम प्रतिमास लगभग १५ रुपये तो इन व्यसनों में खर्च कर ही डालते हैं ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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