________________
मूर्ख और तियंच को समान मानो
३३५
में लिखा है, कि मानव में देवत्व का जो अंश है, उसे निकाल दिया जाये तो उसमें केवल पशुता ही शेष रह जायेगी । पशुता का अर्थ ही मूर्खता है, मूर्खता का दूसरा नाम पशुता है।
तिर्यञ्च (पशु-पक्षी) और मूर्ख मानव में साम्यता इस कारण भी है, पशु-पक्षी प्रसन्नचेता नहीं होते इसी कारण उनकी बुद्धि गहरी, व्यापक दृष्टिसम्पन्न एवं स्थिर नहीं होती । मूर्ख का भी यही हाल है। वैसे तो हाथ-पैर आदि अवयवों या चेहरे की बनावट से ही मूर्ख और जानवर में भेद नहीं किया जाता है, दोनों में साम्य समझा जाता है, व्यवहार, बर्ताव एवं बुद्धिमन्दता से। इसीलिए महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र द्वारा सावधान किया है
मुक्खा तिरिक्खा य समं विभत्ता आप भी मूर्खता और पशुता को समान जानकर अपने जीवन में मूर्खता को न आने दें।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org