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मूर्य और तिवच को समान मानो
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काम करता है और इतनी जड़ता के साथ करता है कि सहसा किसी के रोकने से रुकता नहीं । मूर्ख की बुद्धिमन्दता के कुछ नमूने ये हैं
___(१) जो बुढ़ापे में भी आत्मशान्ति के लिए तैयार न होकर धन की तृष्णा एवं मोह-माया में डूबा रहे।
(२) अपने सारे कुटुम्ब का परित्याग करके अपना अमूल्य जीवन स्त्री के आधीन कर दे।
(३) विषय-भोगों में निर्लज्ज होकर डूब जाये । (४) दूसरों से आशा रखकर स्वयं पुरुषार्थहीन हो जाये।
(५) परोपकार करना न जाने, और उपकार करने वाले के प्रति भी अपकार करे।
(६) जो अपनी बात न सुने, उसे जबर्दस्ती शिक्षा देने का प्रयत्न करे।
(७) जो घर में तो बहुत ही चतुर बनकर विवेक करता है, मगर सभा में कछ कहने में शर्माता है।
(८) जो जूआ, वेश्यागमन, चोरी, परस्त्रीगमन, मद्यपान, निन्दा-चुगली, आदि में आसक्त हो।
ये सब अकृत्य मूर्ख व्यक्ति करता है, अपनी बुद्धिमन्दता एवं अदूरदर्शिता के कारण । मूर्ख की मतिमन्दता की पहचान के लिए एक उदाहरण लीजिए
एक कर्मकाण्डी वृद्ध ब्राह्मण किसी धनिक के यहाँ गीता पाठ करने जाया करता था। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। एक दिन नदी पार करते समय एक घड़ियाल मिला। वह बोला-"पण्डितजी ! पहले मुझे गीता सुनाइये फिर सेठजी को।" यह कहकर उसने ब्राह्मण के सामने एक नौलखा हार भेंटस्वरूप रखा। फिर क्या था ? लोभवश ब्राह्मण यहीं गीता सुनाने लगा। प्रतिदिन यह क्रम चलता रहा। जब गीतापाठ सम्पूर्ण हुआ तो घड़ियाल ने ब्राह्मण को मोतियों से भरा एक घड़ा दक्षिणा में देते हुए कहा-"पण्डितजी ! अगर आप मुझे त्रिवेणी में छोड़ आये तो मैं आप को ऐसे ५ घड़े और दे दूंगा।" ब्राह्मण ने घड़ियाल की बात मानकर उसे त्रिवेणी पहुँचा दिया । घड़ियाल ने अपने वादे के अनुसार उसे ५ घड़े मोतियों के दे दिये । लेकिन जब ब्राह्मण उन्हें लेकर खुशी-खुशी घर जाने लगा तो व्यंग से घड़ियाल मुस्कराने लगा। ब्राह्मण ने कारण पूछा तो उसने कहा-"आप अवन्तिका में जाकर मनोहर धोबी के गधे से मिलकर इसका मतलब पूछना, वह आपको सब बतलायेगा।"
ब्राह्मण अवन्तिका पहुँचकर गधे से मिला। गधे ने कहा-पूर्वजन्म में मैं राजा का सेवक था। एक बार राजा त्रिवेणी-स्नान को गये। त्रिवेणी-तट पर उन्हें इतनी प्रसन्नता हुई कि उन्होंने राजपाट छोड़कर शेष जीवन वहीं बिताने का संकल्प
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