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________________ ३२४ आनन्द प्रवचन : भाग ११ यदि कोई नौकर उस कार्य के लिए इन्कार करता या उस कार्य का होना असंभव बताता तो वह उसे डांटता-फटकारता, मारता-पीटता भी। उसकी इस प्रकृति के कारण उसके पास रहने वाले जितने भी नौकर थे, वे जी हाँ कहते रहते थे और राजा की बात में हाँ में हां मिलाकर उसे चढ़ाते रहते थे । वे सदैव राजा की ठकुरसुहाती करते थे । राजा को भी अपनी प्रशंसा बहुत ही सुहाती । वह कहता'दिन है' तो भले ही अंधेरी रात हो 'जीहजूरिये' उसकी हाँ में हाँ मिलाकर कहते-"जी हाँ, सच्ची बात है, कितना उजाला है, दिन के बारह बजे का सूर्य चमक रहा है।" जब राजा चिल्लाकर कहता है-"अरे मूर्यो ! यह तो रात है रात ।" तब वे कहने लगते-“हजूर की बात सोलहो आने सच है।" एक दिन वह राजा समुद्रतट पर सर करने निकला । साथ में कुछ जीहजूरिये थे ही । समुद्र में ज्वार आ रहा था, समुद्र की उत्ताल तरंगें जोर-जोर से उछल रही थीं। राजा ने वहीं अपनी कुर्सी रखवाई और उस पर बैठकर कहने लगा-"अरे, बतलाओ, मेरा राज्य कहाँ नहीं है ?" वे कहने लगे-“सर्वत्र है महाराज !" राजा-"यह समुद्र भी मेरी आज्ञा मानता है न ?" जीहजूरिये-'हाँ, हजूर, मानेगा क्यों नहीं ?" राजा ने आगे बढ़ते हुए समुद्र के ज्वार को लक्ष्य करके कहा-"अरे ओ मूर्ख ! तुझे पता नहीं है, यहाँ मैं तेरा राजा जीवित बैठा है। अतः पीछे हट, पीछे !" परन्तु समुद्र किसकी मानता है ? उस पर किसी का शासन चला है ? मूर्ख राजा ने फिर गुस्से में आकर कहा-"अरे ! पीछे हटता है या नहीं ? मेरा हुक्म है। कि तू झटपट पीछे हट जा ।" । परन्तु समुद्र में ज्वार आगे से आगे बढ़ता आ रहा था, इधर मूर्ख राजा का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। गुस्से में आकर उसने तलवार निकाली और दरबारी लोग रोकें उससे पहले ही 'अब तो तुझे एक ही झटके में मारकर गिरा दूंगा' यो जोर से चिल्लाता हुआ पानी में आगे बढ़ा। राजा को भान ही न रहा कि वह कहाँ जा रहा है ? थोड़ा-सा आगे बढ़ते ही बहत गहरा पानी था, मूर्ख राजा को उछलती तरंगों ने अपने में समा लिया। इस प्रकार मूर्ख राजा ने अपनी शक्ति जाने बगैर अपनी हठ के कारण प्राण गंवाये। . इसी प्रकार जो लोग जिद्दी और हठाग्रही होते हैं, वे अपनी हैसियत जाने-पहचाने बगैर अंधी दौड़ लगाते हैं, हर एक काम में वे इसी प्रकार करते हैं, चाहे कोई सामाजिक रीति-रिवाज हो, चाहे आर्थिक व्यय-सम्बन्धी कार्य हो, चाहे राजनैतिक हो । चुनाव के दिनों में खड़े होने वाले मौसमी नेताओं को देखकर आप अनुमान लगा सकेंगे कि वे अपनी क्षमता और शक्ति को तौले-नापे बिना ही कितने उछल रहे हैं । झूठी जिद्द के कारण मूर्ख में ये अवगुण सहज ही आ जाते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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