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________________ ( १७ ); ३१४, पाँचवे निह्नव आर्य गंग का दृष्टान्त ३१५, ऋषि और देव में तुल्यता के कारण ३१६, ७६. मूर्ख और तिर्यञ्च को समान मानो मूर्खः लक्षण और पहचान ३१८, चित्रकार - कन्या कनकमंजरी का दृष्टान्त ३१६, मूर्खः वाणी में अविवेकी ३२६, मूर्खः हठाग्रही और जिद्दी ३२३, मूर्खः के अवगुण ३२५, मूर्ख की पकड़ : बहुत गहरी ३२५, मूर्खः बन्दर के समान लालची ३२८, मूर्ख मंदमति होने से पशु तुल्य ३२८, मूर्ख का संग, पशुसंगवत् वर्जित ३३०, पशुओं को भी मात करने वाली मूर्खतायें ३३२, तियंच और मूर्ख की प्रकृति में अन्तर नहीं ३३४ । ८०. मृत और दरिद्र को समान मानो Jain Education International ३१८–३३५ दरिद्रः स्वरूप, प्रकार और विश्लेषण ३३६, दरिद्रता से भी अच्छी बातें ३३७, आपका शरीर लाखों रुपयों का है— दृष्टान्त ३३८, विशाल तृष्णा, दरिद्रता का लक्षण ३४० पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश – हृष्टान्त ३४१, भाग्य खुलते हैं मनोदारिद्रय एवं अनैतिकता दूर करने से ३४३, दरिद्रता का कारण, आलस्य व्यसन और कुरूढियाँ ३४४, भाग्यहीन को कोई कुछ नहीं दे सकता, दो देवों का विवाददृष्टान्त ३४६, नैतिक दृष्टि से दरिद्र भी भाग्यहीन ३४७ दरिद्रता का शिकार मृत है ३४८, पाँच प्रकार के व्यक्ति जीवित भी मृत ३५० । 00 For Personal & Private Use Only ३३६—३५२ - www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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