SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५ ) शन के विभिन्न रूप २०४, नम्रता और हीनता में अन्तर २०६, हीनभावना के शिकार बालक २०६, इसीलिए दोनों का संसर्ग त्याज्य है २०७ । ७२. चुगलखोर का संग बुरा हैं पिशुन का स्वभाव: दुर्भावपूर्ण २०६, चुगलखोर को क्या लाभ क्या हानि ? २१२, चुगलखोरी : स्वरूप, परिणाम और स्थान २१५, चुगलखोरी : परनिन्दा आदि में शक्ति का अपव्यय २१६, अन्य धर्मों में भी चुगलखोरी निन्द्य २१६, चुगलखोर : छिद्रान्वेषी, गुणद्वेषी २१८, पैशुन्य से अभ्याख्यान तक २१६, पिशुन का संसर्ग : महा दुःखदायक २२०, महाविदेह क्षेत्र के चक्रदेव सार्थवाह का दृष्टान्त २२० । ७३. जो धार्मिक, वे ही सेवापात्र धार्मिक कौन : यह या वह ? २२३, तथाकथित पुजारियों का धार्मिक दम्भ - दृष्टान्त २२६, शास्त्रों को रट लेने से धार्मिक नहीं २२८, धार्मिक की पहचान २२६, निष्काम सेवाभावी किसान का दृष्टान्त २३०, दृढ़धर्मी सच्चा धार्मिक २३३, ईमानदार तांगे वाले का दृष्टान्त २३४, धार्मिकों का संग एवं सेवा : सुखप्रद २३८ । ७४. पूछो उन्हीं से, जो पंडित हों २०६२२२ Jain Education International २२३-२३८ पण्डित शब्द ब्राह्मण के अर्थ में रूढ़ २३६, पण्डित शब्द के विकृत रूपान्तर २४०, पंडित शब्द का मेरुदण्ड - बुद्धि २४०, आज के पण्डित २४० निःसार का उपासक पण्डित नहीं २४१, पण्डित शब्द का लक्षण २४३, पण्डित पद का अवमूल्यन २४४, पण्डित २४५, पण्डित की युगस्पर्शी परिभाषा कितना आध्यात्मिक, कितना व्यावहारिक २४६, विकास के साथ आध्यात्मिक निष्ठा २४८, जो स्वयं बंधा हो, वह दूसरे को बंधनमुक्त नहीं कर सकता —- दृष्टान्त २४६, पाप से दूर रहने वाला ही पण्डित २५२, आज के सन्दर्भ में पण्डित के लिए करणीय कुछ समाजोपयोगी कर्तव्य २५३ । २३६—२५४ For Personal & Private Use Only तेजस्वी मार्गदर्शक २४६, पण्डितः पण्डितः बौद्धिक ७५. वन्दनीय हैं वे, जो साधु साधुः स्व-पर-कल्याण साधक २५५ साधु की वन्दनीयता: कैसे . किन गुणों से ? २५४. साधु किन गुणों से वन्दनीय ? २५८. दस श्रमण धर्मों के पालन से साधु वन्दन योग्य बनता है २५८. वेश से २५५-२७२ www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy