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________________ ( १३ ) भिन्नता–दृष्टान्त ६१, एक व्यक्ति हिंसा करे और फल अनेक भोगे तथा अनेक व्यक्ति हिंसा करें और फल एक को मिले-हिंसा के इन दो विकल्पों के दृष्टान्त ६४, प्राणिहिंसा के विविध प्रकार ६५, हिंसा क्यों और किसलिए ? ६६, बाइबिल में अहिंसा के निर्देश के साथ एक शब्द अनर्थ का कारण बना ६६, वैदिकी अहिंसा का दिग्दर्शन ९७, अहिंसा के बारे में अन्य धर्मों तथा लौकिक जनों की विचित्र मान्यतायें ६६, प्राणिहिंसाः किन-किन की ? १०१, हिंसाः प्राणातिपात करना, कराना और अनुमोदन भी १०२, हिंसा के मुख्य भेद-संकल्पज, आरंभज १०२, आरंभी, उद्योगिनी और विरोधिनी-आरंभज हिंसा के ही तीन उत्तरभेद १०२, प्राणि-हिंसा परम अकार्य, अधर्म एवं निषिद्ध क्यों ? १०२, प्राणिहिंसा को अकार्य मानने के ६ कारण १०३, ६६. प्रेम-राग से बढ़कर कोई बन्धन नहीं १०७-१२५ प्रेम-रागः क्या, क्यों और कैसे ? १०७, प्रेम शब्द का अर्थ १०७, प्रेम के पर्यायवाची शब्द १०८, पत्नी का पति के प्रति प्रेम राग १०८, पुत्र के प्रति माता का प्रेमराग ११० गांधारी का दृष्टान्त ११०, दाम्पत्य प्रेम मूलक राग ! दुखजनक १११, दाम्यत्य प्रेम काम मूलक है-रागान्ध पति का उदाहरण १११, परिवार के सभी लोग प्रेमराग वश ११३, प्रेमराग का दायरा बहुत व्यापक ११४, प्रेमराग परम बन्धन क्यों ? ११४, आद्रक मुनि का दृष्टान्त ११६, जड़ भरत की मृगशावक पर आसक्ति, बन्धन बनी-महाभारत का दृष्टान्त १२०, आसक्ति छोड़े बिना सुख नहीं १२१, आसक्ति का बन्धन आत्मज्ञान को ले डूबा १२१, वैदिक पुराण का विद्याधर ब्राह्मण का दृष्टान्त १२२, प्रेमराग का बन्धन तोड़ डालो १२३, बौद्ध भिक्षु नागसमाल का दृष्टान्त १२४ । ६७. बोधिलाभ से बढ़कर कोई लाभ नहीं-१ १२६-१३८ बोधिलाभ के मुख्य अर्थ १२६, रत्नत्रय-लाभ की दुर्लभता क्यों ? १२७, आत्म-बुद्धि की दुर्लभताः क्या और कैसे ? १३०, आत्म बुद्धि से आत्मबोध १३१, आत्मबोध प्राप्त व्यक्ति की दशा-भगवान ऋषभदेव के ६८ पुत्रों का दृष्टान्त १३२, सम्यकदृष्टि की दुर्लभताः क्या और कैसे ? १३४, सम्यगदृष्टि देह और संसार के सुख-दुखों में सम रहता है १३६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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