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________________ ४४ मूर्ख नर होते कोपपरायण धर्मप्रेमी बन्धुओ ! आज मैं आपके समक्ष एक ऐसे जीवन की चर्चा करूँगा, जिसमें क्रोध, रोष का आवरण छा जाने के कारण ज्ञान का निर्मल प्रकाश बन्द हो जाता है, और मूर्खता के कीटाणु वहाँ जम जाते हैं। संसार में ऐसे भी लोग हैं, जो समझदारी और विवेक-बुद्धि से जीवन बिताना नहीं जानते, उनका जीवन दुःख-दारिद्र य और अशान्ति में व्यतीत होता है। वे दूसरों के साथ नम्र, मधुर और उदार व्यवहार करना नहीं जानते, जब देखो तब क्रोध का भयंकर हथियार लिये रहते हैं। इसीलिए गौतमऋषि ने इस जीवनसूत्र द्वारा मूर्ख मनुष्य के जीवन का परिचय देते हुए कहा है 'मुक्खा नरा कोवपरा हवंति' "मूर्ख मनुष्य कोपपरायण होते हैं, अथवा जो कोपपरायण होते हैं, वे मूर्ख कहलाते हैं।" गौतम कुलक का यह सेंतीसवाँ जीवनसूत्र है, जिसके द्वारा महर्षि गौतम संसार के समझदार लोगों को मानो चेतावनी देते हुए कहते हैं-मूर्खताभरा जीवन मत बिताओ, क्योंकि वह क्रोधानल से भरा रहता है ; तथा क्रोध मत करो, ताकि मूर्खता तुम पर हावी न हो। मूर्ख की मूर्खता : जीवनरत्न व्यर्थ फैंकना ___ मनुष्य जीवन एक अमूल्य रत्न है । परन्तु जो मूढ़ इस रत्न को पाकर इसका मूल्य और इसका सही उपयोग नहीं जानता, वह मूर्खतावश इसे फेंक देता है, यों ही विषय-भोगों और लड़ाई-झगड़ों में इसे व्यर्थ गँवा देता है, जीवन-रस को यों ही निरर्थक लुटा देता है। एक बन्दर को कहीं से कीमती हीरा मिल गया । बन्दर हीरे का मूल्य और उपयोग तो जानता नहीं था। उसने हीरे को खाने की चीज समझकर मुँह में रखा, पर कुछ भी स्वाद न आया। फिर वह उसे जीभ से चाटने लगा, पर चाटने से वह पिघला भी नहीं। तब वह दाँतों से उसे तोड़ने लगा, पर हीरा बन्दर के दाँतों से कैसे टूट सकता था ? वह टूटा नहीं। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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