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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण–२ १९ "राजा अबन्धुओं का बन्धु है, राजा अन्धों का नेत्र (मार्गदर्शक) है, राजा सभी न्यायवर्ती व्यक्तियों का माता-पिता है।" विभिन्न नीतिग्रन्थों में राजा की विशेषताएं इस प्रकार वर्णित हैं
पर्जन्यमिव भूतानामाधारः पृथवीपतिः। "राजा प्राणियों के लिए मेघ की तरह आधारभूत है ।"
न राज्ञः परं देवतम् । "राजा से बढ़कर कोई देवता नहीं है।"
बालोऽपि नावमन्तव्यो, मनुष्य इति भूमिपः ।
महती देवता ह्यषा नररूपेण तिष्ठति ॥' "राजा बालक हो तो भी मनुष्य समझकर कदापि उसकी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए; क्योंकि राजा मनुष्य के रूप में इस भूमण्डल पर महान् देव है।"
इन्द्रात् प्रभुत्वं ज्वलनात् प्रतापं क्रोधो यमाद् वैश्रवणाच्च वित्तम् । पराक्रमं रामजनार्दनाभ्यामादाय राशः क्रियते शरीरम् ॥
"इन्द्र से प्रभुता, अग्नि से प्रताप, यम से क्रोध, वैश्रवण से धन और राम-कृष्ण से पराक्रम लेकर राजा का शरीर बनाया जाता है।"
राजा कालस्य कारणम् "राजा ही वास्तव में काल के अच्छे-बुरे होने का कारण है।" __ कहीं-कहीं तो राजा को ईश्वर के समकक्ष माना गया था। इन सबका कारण यह है कि राजा से विशिष्ट त्याग, गुण तथा योग्यता की अपेक्षा रखी गई थी। श्रेष्ठ राजा के लक्षणों को देखिये
सत्यं शौयं दया त्यागो, नृपस्यैते महागुणाः। "सत्य, शौर्य, दया और त्याग, ये राजा के चार महागुण हैं।"
विजितात्मा तु मेधावी स राज्यमभिपालयेत् । "जो जितेन्द्रिय है, बुद्धिमान है, वही राजा राज्य का परिपालन कर सकता है।"
पात्रे त्यागी गुणे रागी, भोक्ता परिजनैः सह।
भावबोद्धा, रणेयोद्धा प्रभुः पंचगुणो भवेत् ॥ “पात्र को दान देने वाला, गुणों का अनुरागी, परिजनों के साथ वस्तु का उपभोग करने वाला, दूसरे के मनोभावों को भांपने वाला, और युद्ध आ पड़ने पर कुशल योद्धा, राजा इन पाँच गुणों से युक्त होना चाहिए।"
१. कविता-कौमुदी ४. भावदेवसूरि ७. महाभारत
२. चाणक्य-नीतिसूत्र ३. मनुस्मृति ७-८ ५. मनुस्मृति
६. हितोपदेश ३/१२६ ८. सुभाषित रत्न भाण्डागार
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