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________________ पतिव्रता लज्जायुक्त सोहती ३५७ यह तो हुई सः चारी और धर्मिष्ठ पति की इच्छानुगामिनी होकर रहने की बात; परन्तु पति कुमार्गगामी हो, वह अपनी इच्छानुसार पत्नी को भी चलाना चाहता हो, उस समय पतिवता स्त्री का धर्म क्या है ? यह सोचना है। पतिव्रता स्त्रियों के लिए यह समस्या भी कोई बहुत पेचीदा नहीं है। पतिव्रता में अद्भुत बल और शील का अद्भुत तेज होता है। उसके पास प्रेम और त्याग के बहुत बड़े शस्त्र हैं, त्याग और प्रेम के शक्तिशाली शस्त्रों को अपनाकर कोई भी भावनाशील पतिव्रता नारी अपने कुमार्गगामी पति को भी सन्मार्ग पर ला सकती है। प्रेम और त्याग के आत्मीयता भरे सत्याग्रह से कुमार्गगामी पति को सत्य पथ पर लाना कोई कठिन नहीं है। सुधार के लिए कटु संघर्ष अनिवार्य नहीं है। सिंहल (लंका) द्वीपवर्ती अनुराधपुरवासी एक सेठ की पुत्री "सिरिमा' के वयस्क होते ही माता-पिता ने उसका विवाह सुमंगल नामक एक व्यापारी के साथ कर दिया। विवाह के बाद सुमंगल व्यापार के हेतु जलयानों में माल भरकर विदेश गया। एक ही वर्ष में उसने प्रचुर धन कमाया। सुमंगल ने अपना व्यापार समेटकर घर लौटने की सूचना दी। सिरिमा को जब पति के आगमन के समाचार मिले तो वह अत्यन्त हर्षित हुई । उसने सारा घर सजाया। पति ने जब घर में प्रवेश किया तो सिरिमा ने उसकी आरती उतारी, प्रसन्नमन से स्वागत किया। किन्तु पति के मुख पर चिन्ता और उदासी देखकर सिरिमा ने उसका कारण पूछा तो सुमंगल ने कहा"समुद्रतट पर मन्दारमाला नामक एक गणिका से मेरा प्रेम हो गया है।" तभी गणिका की दासी सुमंगल को बुलाने आयी। पतिव्रता सिरिमा ने सारी परिस्थिति समझकर अपने कर्तव्य का निर्णय कर लिया। उसने पति से कहा-"अगर आपका गणिका से प्रेम हो गया है तो मैं आपके मार्ग में बाधक नहीं बनूंगी। खुशी से वहाँ पधारें। साथ ही गणिका की दासी से कहा- "तुम्हारी स्वामिनी से कहना कि यदि मेरा पति तुम्हें पसंद हो तो अपना व्यवसाय छोड़कर मेरे (पति के) घर में आ जाए उसके लिए मैं भरसक त्याग करने को तैयार हूँ।" ऐसा ही हुआ । सुमंगल ने गणिका से शादी कर ली। एक दिन एक साधु को खून से लथपथ देखकर सिरिमा ने कारण पूछा तो बताया गया कि यह साधु भिक्षा हेतु गया था तो वहाँ मन्दारमाला ने उसके सिर पर चाँदी का बर्तन दे मारा। सिरिमा ने घर जाकर मन्दारमाला से साधु के सिर पर बर्तन मारने का कारण पूछा तो उसने कहा-"मेरा पति (सुमंगल) कल किसी नयी स्त्री से विवाह करने जा रहा है, इस कारण मैं अपने आपे में न थी।" सिरिमा ने सुना तो उसे बहुत पश्चात्ताप हुआ। उसने पतिव्रतधर्म के नाते मन्दिर में जाकर भगवान से प्रार्थना की कि 'मेरे पति का हृदय बदलें।' शुभ अध्यवसायों के कारण उसके पति ने नये विवाह का विचार त्याग दिया। सिरिमा के पवित्र वचनों ने उसका हृदय परिवर्तन कर दिया। उसने स्वयं संसार से विरक्त होकर बौद्ध भिक्षुक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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