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पतिव्रता लज्जायुक्त सोहती
धर्मप्रेमी बन्धुओ,
आज मैं आपके समक्ष महिलाओं से सम्बन्धित जीवन पर चर्चा करूँगा । भारतीय संस्कृति में विवाहित महिला को अपना जीवन पवित्र और आदर्श रखने के सम्बन्ध में बहुत जोर दिया गया है। उसका कारण यह है कि महिला के जीवन पर उसकी सन्तान का जीवन निर्भर है । अगर महिला (माता) का जीवन पवित्र, सुसंस्कारी, धर्मिष्ठ न रहा तो उसकी सन्तान का जीवन भी पवित्र, सुसंस्कारी और धर्मिष्ठ नहीं रह सकेगा, क्योंकि माता के अच्छे-बुरे संस्कारों का प्रभाव उसकी सन्तान पर पड़ता है । इसलिए राष्ट्र को अगर पवित्र, धर्मात्मा, सुसंस्कारी, सच्चरित्र मानव चाहिए तो उनकी माताओं को पवित्र, धर्मात्मा, सुसंस्कारी, सच्चरित्र एवं पतिव्रता रहना परम आवश्यक है ।
इसी दृष्टिकोण से महर्षि गौतम ने यहाँ एकपतिनिष्ठ पतिव्रता महिला के जीवन की शोभा के सम्बन्ध में बताया है । गौतमकुलक का यह छियालीसवाँ जीवन सूत्र है, वह इस प्रकार है
" लज्जाजुओ सोहs एकपत्ती ।" " एकपतिनिष्ठा - पतिव्रता लज्जायुक्त ही सोहती है ।" हम इसके विविध पहलुओं पर बारीकी से विचार करे ।
पतिव्रता और पतिव्रत धर्म की महिमा
भारतीय धर्मग्रन्थों में पतिव्रतधर्म की महिमा का मुक्तकण्ठ से वर्णन किया गया है । भारतीय इतिहास भी नारियों के पतिव्रत धर्म और उनके जाज्वल्यमान चरित्र से भरा पड़ा है । एक नहीं; अनेकों ऐसी कथाएँ हैं, जिनका सारांश यह रहा है। कि पतिव्रता नारियों की अलौकिक शीलनिष्ठा के समक्ष बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों, महात्माओं और देवताओं को भी झुकना पड़ा है। वैदिक धर्मग्रन्थों में तो यहाँ तक बता दिया है कि पतिपरायणा नारी योगी, यति, सन्त-संन्यासियों से भी उत्तमगति को सहज ही प्राप्त कर लेती है। बल्कि पतिभक्ता नारी को साक्षात् गृहलक्ष्मी या देवी माना गया है | देखिये वैदिक धर्मग्रन्थ का एक प्रमाण
नित्यं स्नाता सुगन्धा च अल्पभुङ मितवक्त्री च,
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नित्यं च प्रियवादिनी । देवता सा न मानुषी ॥
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