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राजमन्त्री बुद्धिमान सोहता ३२७ प्रजा की असन्तुष्टि आदि के रूप में उसका कुफल भोगना पड़ता है। परन्तु राज्य को अच्छे-बुरे बनाने की मुख्य चाबी मन्त्री के हाथ में होती है, वही राज्य कार्य का मुख्य तौर से संचालक होता है। नीतिकार भी इस विषय में स्पष्ट कहते हैं
मोगस्य भाजनं राजा, न राजा कार्यभाजनम् ।
राजकार्यपरिध्वंसी मंत्री दोषेण लिप्यते ॥ राजा कार्य के फलाफल के भोग का भागी होता है, वह कार्य का भागी नहीं होता, क्योंकि राज्यकार्य का संचालन मन्त्री करता है। राज्यकार्य को नष्ट-भ्रष्ट करने वाला मन्त्री दोष से लिप्त होता है । वास्तव में, राजा को राज्यकार्य का सुफल तभी मिल सकता है, जब मन्त्री उसका संचालन ठीक ढंग से वफादारीपूर्वक करे। जब मन्त्री ही राज्यकार्य को बिगाड़ने पर उतारू हो जाता है, तब उसका दुष्परिणाम राजा को भोगना पड़ता है ।
एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए
ईरान के शाह अपनी प्रजा के सुख-दुःख का पता लगाने के लिए गुप्तवेश में रात को नगरचर्या करने निकले। रास्ते में उन्हें एक किसान मिल गया। ईरान के शाह उस समय विदेशी पथिक के वेश में थे। उन्होंने किसान से देश की आवहवा तथा जमीन के उपजाऊपन के बारे में तथा खेत में फसल कितनी होती है, ऐसी औपचारिक बातें कीं। किसान अपने धन्धे के विषय में इस विदेशी राहगीर के मुख से चर्चा सुनकर हार्दिक सम्मानपूर्वक आकर्षित हुआ। ईरान के शाह ने किसान की सही स्थिति जानने के लिहाज से पूछा- "मैंने सुना है, इस देश की खेती समृद्ध करने के लिए तुम्हारे शाह ने नहर से सारे देश की धरती को सींचने की योजना बनाई है। सतत मिलते हुए नहर के पानी से तुम्हारे खेत तो हरे-भरे सुन्दर लगते होंगे।"
किसान बोला- "दूसरे किसानों की जमीन हरी-भरी बनी होगी, दूसरों के खेत में प्रचुर फसल लहलहाती होगी, परन्तु मैं तो बिलकुल वंचित हूँ, इससे । मुझे पड़ोसी ऐसा जबर्दस्त मिला है कि नहर का पानी मेरे खेत तक पहुँचने ही नहीं देता। मैंने उसे खूब समझाया, मगर वह मेरी एक भी बात सुनने को तैयार न हुआ।"
शाह-"उसकी ओर से तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है, इस सम्बन्ध में तुमने सरकार से लिखा-पढ़ी क्यों नहीं की ? नहर का पानी उसका अकेले का नहीं है, नहर पर राज्य के प्रत्येक किसान का समान अधिकार है । तुम्हें अपने अधिकार का उपभोग करने से वह वंचित रख ही कैसे सकता है ?"
नम्र स्वर में किसान ने कहा-"आप कहते हैं, यह बात दूसरों के लिए सच्ची होगी, पर मेरे जैसे अभागे के लिये तो व्यर्थ है। नहर का पानी मुझे मिले, इसके लिए मैंने कितनी ही अर्जियाँ अलग-अलग महकमों में लिखकर दी, पर मुझे
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