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दीक्षाधारी अकिंचन सोहता
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किसी को जो आशा, अपेक्षा या स्पृहा रखी थी, वह पूर्ण न होने पर निराशाजन्य दुःख होता है, उस व्यक्ति के प्रति द्वेष, रोष या दुर्भाव पैदा होता है । आत्मा कर्मबन्ध से मलिन होती है ।
स्वामी लाभानन्दजी बहुत बड़े योगी थे, अकिंचन एवं निःस्पृह सन्त थे । वे सदा आत्मध्यान में मग्न रहते थे। एक बार वे मारवाड़ के ऐतिहासिक नगर मेड़ता में विराजमान थे । उनकी वचन सिद्धि और चमत्कार की दूर-दूर तक धूम मची हुई थी । परन्तु अपने विषय में प्रसिद्धि से उन्हें कोई वास्ता न था । वे स्वयं चमत्कार को आत्मविकास में बाधक मानते थे ।
मेड़तानरेश के दो रानियाँ थीं। राजा स्वाभाविक रूप से छोटी रानी को अधिक चाहता था । उसने बड़ी रानी के पास आना-जाना बन्द कर दिया । बड़ी रानी श्रद्धालु थी । पति की उपेक्षा उसे खटकने लगी । राजा को आकर्षित करने के लिए उसने कई प्रयत्न किये, किन्तु सफलता न मिली । अन्त में रानी का ध्यान स्वामी लाभानन्दजी की ओर गया । अपनी करुण कथा का वर्णन करते हुए स्वामीजी को एक पत्र लिखा । और उनसे प्रार्थना की— 'कोई ऐसा मन्त्र देने की कृपा कीजिए जिससे राजाजी मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ ।'
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दासियाँ रानी का पत्र लेकर स्वामीजी के पास पहुँची । उन्होंने रानी की ओर से मौखिक निवेदन भी किया और मन्त्र देने के लिए आग्रह भी । स्वामीजी उस समय आध्यात्मिक भजन लिख रहे थे । वे दासियों की प्रार्थना पर स्तब्ध रह गये । उन्होंने समझाया - " मैं ऐसा मन्त्र नहीं जानता ।"
किन्तु दासियाँ न मानीं, वे यही समझती अन्त में, जब वे बिलकुल न मानीं तो स्वामीजी ने लेकर उस पर कुछ घसीट दिया । दासियाँ उसे ही चली गयीं । रानीजी ने मन्त्र को पढ़ना अनुचित समझकर उसे ताबीज में मढ़वा लिया
रहीं कि स्वामीजी टाल रहे हैं । उन्हें टालने के लिए एक कागज मन्त्र समझकर खुश होती हुई
राजाजी बड़ी रानी के महल
और अपनी बाँह पर बाँध लिया । उसी दिन अचानक में चले आए और स्नेहपूर्वक बातें करने लगे । रानी ने यह सब मन्त्र का प्रभाव समझा । बातचीत के सिलसिले में उसने कहा - "यह मन्त्र का ही प्रभाव है कि अब दासी पर इतनी कृपा हो रही है, नहीं तो, हजूर कब पसीजने वाले थे ।”
राजा के पूछने पर रानी ने सारा हाल सुना दिया। राजा को आश्चर्य हुआ कि लाभानन्द जैसे आत्मनिष्ठ योगी औरतों को वशीकरण मन्त्र भी देते हैं । राजा पहुँचे लाभानन्दजी के पास । पूछा तो स्वामीजी ने साफ इन्कार कर दिया कि मैंने तो कोई मन्त्र नहीं दिया है ।
आखिर रानी से ताबीज मँगवाकर खोला गया तो उस कागज पर लिखा हुआ था - 'राजा बड़ी रानी पर खुश रहे तो लाभानन्द को क्या और नाराज रहे तो लाभानन्द को क्या ?"
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