________________
ब्रह्मचारी विभूषारहित सोहता २६६
ऐसा आभूषण; जो कि शिष्य की बताई हुई कठोर शर्त पर टिक सके, न तो अंगूठी है, न बाजूबन्द है, न नवलखा हार है । ऐसी योग्यता इन आभूषणों में नहीं है । वह आभूषण है— शील । गुरु ने कहा – 'शीलं परं भूषणम्' शील ही परम आभूषण है । जिसके पास शीलरूपी आभूषण है, उसे दूसरे आभूषणों से शरीर को विभूषित करने की जरूरत नहीं है । इसीलिए महर्षि गौतम ने कहा
अभूसणो सोहइ बंभयारी'
ब्रह्मचारी विभूषारहित सोहता है, उसे बाह्य विभूषा की जरूरत नहीं है । आप भी शीलरूपी आभूषण को अपनाइए, आपका आत्मसौन्दर्य चमक उठेगा ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org